नया तराना

कल-कल बहती नदियाँ भी तो,
गीत सुहाना गाती है।
वन-वन फिरती सोन चिरैया,
नया तराना गाती है।।

झीं-झीं करते झींगुर मानो,
राग सलौना गाते हैं।
बैलों के घुँघरू भी तो,
जीवन राग सुनाते हैं।।

मधुर कंठ से कोयल प्यारी,
मन सबका हर जाती है।
वन-वन फिरती सोन चिरैया,
नया तराना गाती है।।

भँवरों की गुंजन से कितनी,
स्वर लहरियाँ निकलती हैं।
झरने की झर-झर से भी तो,
तानें मधुर निकलती हैं।।

प्रकृति सुन्दरी के तन मन की,
वीणा बहुत लुभाती है।
वन-वन फिरती सोन चिरैया,
नया तराना गाती है।।

रचयिता
प्रदीप कुमार चौहान,
प्रधानाध्यापक,
मॉडल प्राइमरी स्कूल कलाई,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।

Comments

  1. बहुत बढ़िया लाजवाब सुन्दर रचना

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