भारत ही मेरा घर
सिर पर सूरज की थाल लिए
मैं चलती हूँ डगर-डगर
चेहरे कितने रंग-बिरंगे
मिलते हैं शहर-शहर
रहन-सहन का ढंग भिन्न है
भिन्नता है पग-पग पर
अलग-अलग बोली बानी है
पर एक आत्म इनके भीतर
संस्कृतियों का अंतर गहरे
फिर भी है देशप्रेम मुखर
होली, ईद, क्रिसमस, वैशाखी
देते खुशियाँ भर-भर कर
महापुरुषों की धरती है ये
बसते देव जिसके घर-घर
पूरी दुनिया घूम ली हमने
पर भारत ही मेरा घर
रचयिता
शीला सिंह,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय विशेश्वरगंज,
नगर क्षेत्र-गाजीपुर,
जनपद-गाजीपुर।
मैं चलती हूँ डगर-डगर
चेहरे कितने रंग-बिरंगे
मिलते हैं शहर-शहर
रहन-सहन का ढंग भिन्न है
भिन्नता है पग-पग पर
अलग-अलग बोली बानी है
पर एक आत्म इनके भीतर
संस्कृतियों का अंतर गहरे
फिर भी है देशप्रेम मुखर
होली, ईद, क्रिसमस, वैशाखी
देते खुशियाँ भर-भर कर
महापुरुषों की धरती है ये
बसते देव जिसके घर-घर
पूरी दुनिया घूम ली हमने
पर भारत ही मेरा घर
रचयिता
शीला सिंह,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय विशेश्वरगंज,
नगर क्षेत्र-गाजीपुर,
जनपद-गाजीपुर।
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