अच्छे विचार

तू चाहे दरिया बन, चाहे सहरा बन,
पर हक़ीक़त में जैसा है, वैसा बन।

तेरा काम,  औरों के काम आना है,
सबको खुशी दे सके, वो लम्हा बन।

मुखौटे में, असलियत किसकी छुपी है?
इसे उतार फेंक, तू ख़ुद का चेहरा बन।

किसी का दिल, भूल से भी मत दुखा,
सबका दर्द मिटा दे, तू ऐसी दवा बन।

मत सोच, यह जमाना क्या कर रहा है?
तू इंसानियत सिखाने का जरिया बन।

माना कि अब सबने तहज़ीब भुला दी,
सब तहजीब सीख लें, ऐसी प्रेरणा बन।

तेरे रहते तेरा घर तरक्की में न पिछड़े,
सब प्रगति पथ पर चलें, वो शिक्षा बन।

रचयिता
प्रदीप कुमार,
सहायक अध्यापक,
जूनियर हाईस्कूल बलिया-बहापुर,
विकास खण्ड-ठाकुरद्वारा,
जनपद-मुरादाबाद।

विज्ञान सह-समन्वयक,
विकास खण्ड-ठाकुरद्वारा।

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