गुरुवर प्रताप

प्रगति परम्परा के हम वाहक हैं हमसे न टकराना कोई
जग कल्याण की रखते चाहत हमसे न लड़ जाना कोई
सुरभित हो जग की बगिया डाली-डाली पर खिले फूल
'निडर' हिफाज़त का इच्छुक है प्रभंजन मत जाना कोई
हम  हैं  शिक्षक कुलवंशी प्रलय सृजन के मालिक हैं
ज्ञान शक्ति के दाता हम मत मुझको सबक सिखाना कोई
मंझधारों में पतवार नज़र आते हम ही मेरी ताकत को पहचानो
हम मांझी हैं जग दरिया के न प्लवन नियम बतलाना कोई
प्रगति परम्परा के हम वाहक.............................
मेरे साहस तप के सम्मुख सिंहासन होते नतमस्तक
मुखर प्रखर तेवर हैं मेरे इनसे न भिड़ जाना कोई
जिम्मेदार जान समझ ले गर न माने तारीख़ निहार ले
मुझे झुका दे तुझ जैसी हिम्मत ऐसी फितरत न लाना कोई
मै गढ़ता हूँ मूरति ऐसी जो बनती है देवों जैसी
ऐसा युग निर्माता मै हूँ मुझसे मत टकराना कोई
प्रगति परम्परा के हम वाहक..........................
   
रचनाकार
देवेन्द्र कश्यप 'निडर',
साहित्यकार व सामाजिक चिंतक,
सहायक अध्यापक, 
प्राथमिक विद्यालय हरिहरपुर,
विकास क्षेत्र-मछरेहटा, 
जिला-सीतापुर।

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