बढ़ते कदम

बढ़ो-बढ़ो, बढ़ो-बढ़ो, बढ़ते चलो।
सुनो-सुनो, सुनो-सुनो, सुनते चलो।

झरना कहे, गुनगुनाओ-गुनगुनाओ
बिखरे कणों से सबका मन हर्षाओ।।

नदी कहे, कर्म करो कर्म करो।
धरती की प्यास को बुझाते चलो।

चोटी कहे, बढ़ो-बढ़ो, चढ़ो-चढ़ो।
भेदन निज लक्ष्य करो चलो।।

फूल कहे हँसो-हँसो, हँसते चलो।
सुख-दुःख के खट्टे-मीठे स्वाद चखो।।
वृक्ष कहे अडिग बनो, खुलकर जिओ।
शीत ताप और तूफान सहते चलो।।

दिशा कहे चलो-चलो, बढ़ो-बढ़ो।
साथ-साथ रूढ़ियों को तोड़ चलो।
मेघ कहे, बरसते बरसाते चलो।
खुशहाल धरा को बनाते चलो।

धरती कहे धीर-वीर, सहनशील बनो।
धैर्य धरो, धैर्य धरो, धैर्य धरो।

नीर कहे मिलो-मिलो, मिलते रहो।
ऊँच-नीच वर्ग-भेद मिटाते चलो।

व्योम कहे, फैलो-फैलो फैलते चलो।
एकता, अखंडता पनपाते चलो।।
भानु कहे चमकते-चमकाते रहो।
ज्ञान के प्रकाश को फैलाते चलो।।

चाँद कहे बदलते-बदलते रहो।
नित नये बदलाव तुम लाते रहो।।

सुनो-सुनो, बढ़ो -बढ़ो, चलो-चलो।
नित नया इतिहास तुम रचते चलो।
बढ़ो*****
चलो*******
सुनो*******
बढ़ते चलो, बढ़ते चलो, बढ़ते चलो

रचयिता
डाॅ0 गीता नौटियाल,
सहायक अध्यापक,
रा0उ0वि0 बैनोली भरदार,
जनपद-रूद्रप्रयाग,
उत्तराखण्ड।

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