एकलव्य की कलम से
गुरुवर हैं मेरे बड़े महान।
हमको देते विद्या का दान।
स्नेहपूर्वक हमें पढ़ाते।
निरंतर आगे हमें बढ़ाते।
हे प्रभु, दे दो इतना वरदान।
बना रहे गुरुवर का मान।
मात-पिता को हो हम पर अभिमान।
बढायें सदा गुरुओं की शान।
गुरु हमारे राष्ट्र निर्माता।
हम बच्चों के भाग्य विधाता।
फिर क्यों हुआ उनका अपमान?
क्या भूल गए लोग गुरु का सम्मान?
किस ओर जा रहा है आज समाज?
संदिग्ध लग रहे हैं लोगों को गुरु के काज।
अपमानित हुये हैं हर गुरु व शिष्य आज।
छिप गये कहाँ गुरु द्रोण के अर्जुन आज।
रचयिता
सुमन शर्मा,
इं. प्रधनाध्यापक
पूर्व माध्यमिक विद्यालय मांकरौल,
विकास खण्ड - इगलास,
जनपद - अलीगढ़।
हमको देते विद्या का दान।
स्नेहपूर्वक हमें पढ़ाते।
निरंतर आगे हमें बढ़ाते।
हे प्रभु, दे दो इतना वरदान।
बना रहे गुरुवर का मान।
मात-पिता को हो हम पर अभिमान।
बढायें सदा गुरुओं की शान।
गुरु हमारे राष्ट्र निर्माता।
हम बच्चों के भाग्य विधाता।
फिर क्यों हुआ उनका अपमान?
क्या भूल गए लोग गुरु का सम्मान?
किस ओर जा रहा है आज समाज?
संदिग्ध लग रहे हैं लोगों को गुरु के काज।
अपमानित हुये हैं हर गुरु व शिष्य आज।
छिप गये कहाँ गुरु द्रोण के अर्जुन आज।
रचयिता
सुमन शर्मा,
इं. प्रधनाध्यापक
पूर्व माध्यमिक विद्यालय मांकरौल,
विकास खण्ड - इगलास,
जनपद - अलीगढ़।
Pearl of aligarh
ReplyDeleteVery nice poem
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