खुद से सामना

आज मुझसे मुखातिब मेरा आईना हो गया।
सच कहूँ तो मेरा खुद से ही सामना हो गया।।

1) झट देख मुझको उसने प्रश्न पहला ये उठाया,
तुमने आज बच्चों को कक्षा में क्या-क्या पढ़ाया?

मैंने फिर उसे विस्तार से समझाया।
जोड़ घटा के साथ-साथ पाठ को पढ़ना भी सिखाया।।

2) इतना सुनते ही झट उसने दूसरा प्रश्न कुछ यूँ उठाया,
आज तुमने बच्चों को खाने मे क्या-क्या खिलाया?

इस तरह फिर मैंने कुछ अपना उत्तर फरमाया।
रोटी दाल खिलाने के साथ-साथ फलों को भी बँटवाया।।

3) जब संतुष्ट हो वो उससे तीसरा प्रश्न फिर से आया,
क्या बच्चों को खेल के साथ साथ योगाभ्यास भी करवाया?

अपने उत्तर में मैने कुछ यूँ हामी भरी।
मानो सीखती हुई चिड़िया को इक नई उड़ान मिली।।

कुछ इस तरह फिर मैंने खुद को आईने में सन्तुष्ट पाया।
सच बताऊँ तो ऐसे खुद से मिलकर बहुत मज़ा आया।।

रचयिता
आयुषी अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
कम्पोजिट विद्यालय शेखूपुर खास,
विकास खण्ड-कुन्दरकी,
जनपद-मुरादाबाद।

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