रहमतें बरसने लगती हैं

बुर्जुगों की दुआएँ और पुरखों की आत्माएँ जब आशीष देती हैं
तो हमारी जिंदगी में रहमतें बरसने लगती हैं।               
उनकी दुआओं-आशीषों से ही पूरा घर चहकता है।               
सारा घर  किलकारियों से गूँजता है
और जिंदगी भी हमारे साथ महक उठती है।
बुजुर्गों की दुआएँ और पुरखों की आत्माएँ जब आशीष देती हैं
तो हमारी जिंदगी में रहमतें बरसने लगती हैं। 
उजाले से भर जाती है, रास्ते रौशन हो उठते हैं
और कायनात मुस्कराने लगती है।
बुजुर्गों की दुआएँ और पुरखों की आत्माएँ जब आशीष देती हैं
तो हमारी जिंदगी में रहमतें बरसने लगती हैं।
यह इतना आसान नहीं है आत्मा से दुआ करके देखिए
या आत्माओं की दुआएँ लेकर देखिए।
यह तभी महसूस होगा, जब आपकी आत्मा के भीतर
एक भरोसा, एक विश्वास होगा।
बुजुर्गों की दुआएँ और पुरखों की आत्माएँ जब आशीष देती हैं
तो हमारी जिंदगी में रहमतें बरसने लगती हैं।

रचयिता
शिल्पी गोयल,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय निज़ामपुर,
विकास खण्ड-सिकन्दराबाद,
जनपद-बुलंदशहर।

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