मैं हिंदी हूँ

मैं हिंदी हूँ।
सकुचाई सी, शरमाई सी हिंदी,
आज अपने ही अस्तित्व पर घबराई से हिंदी,

मैं हिंदी हूँ।

जननी हूँ मैं, क्यों भूल रहे हो तुम,
क्यों अन्य भाषाओं से मुझे तोल रहे हो तुम,

क्यों लगती है तुम्हें अन्य भाषाएँ अपनी और पराई सी हिंदी,
आज अपने ही अस्तित्व पर घबराई सी हिंदी,

मैं हिंदी हूँ।

क्यों वह गर्व सा मुझ पर तुम्हारा, आज धुँधला रहा है,
क्यों मुझे अपना कर, तू शर्मा रहा है,

तेरी पहचान सी, तेरी परछाई सी हिंदी,
आज अपने ही अस्तित्व पर घबराई सी हिंदी,

मैं हिंदी हूँ।
तू स्वयं को बदल, युग स्वयं नहीं बदलेगा
अगर तू ही नहीं समझा मुझे, तो और कौन समझेगा,

क्यों आज उदास सी है, जो कभी रहती थी हर्षाई सी हिंदी,
आज अपने ही अस्तित्व पर खबराई सी हिंदी,

मै हिंदी हूँ।

क्यों मेरे अपने ही आज साथ छोड़ रहे हैं मेरा,
मुझे निम्न स्तर ना समझ, मैं अभिमान हूँ तेरा,

ना समझ मुझे नीरस, मैं ही हूँ तेरी मन भाई सी हिंदी,
आज अपने ही अस्तित्व पर खबराई सी हिंदी,

मैं हिंदी हूँ।

गर्व से अपनाओ मुझे, तुम्हें यूँ समेट लूँगी अपनी ममता के आंचल में,
जैसे हर रंग समा जाता है, किसी निर्मल जल में,

निर्भर नहीं किसी पर, पूर्ण सी, अपने गौरव पर इठलाई सी हिंदी,
नहीं रहूँगी अब अपने अस्तित्व पर घबराई सी हिंदी,
मैं आज अपने गौरव पर इठलाई सी हिंदी,

स्वयं में परिपूर्ण, गौरवान्वित,
मैं हिंदी हूँ।
                   
रचयिता
इंदु गुर्जर,
सहायक अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय छजारसी,
ब्लॉक- बिसरख,
जिला- गौतमबुद्धनगर।

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