गुरू बिन ज्ञान नहीं रे

गुरू बिन ज्ञान नहीं रे
गुरू बिन ज्ञान नहीं रे
जीवन में तिमिर है बस तब तक
जब तक सच्चे गुरू की पहचान नहीं रे
     गुरू बिन ज्ञान नहीं रे|
      गुरू बिन ज्ञान नहीं रे||

मिल जाए सच्चे गुरू का सानिध्य
समझो यही ईश्वर का उपहार
प्रस्तर को गढ़ मूरत हो तैयार
ज्ञान रूपी शस्त्र से जब करे प्रहार
परन्तु उसको तनिक भी अभिमान नहीं रे
     गुरू बिन ज्ञान नहीं रे|
     गुरू बिन ज्ञान नहीं रे||

गुरू ब्रह्मा, गुरू विष्णु
गुरू ही है देव महेश
गुरू से अंतर-मन के पट खुले
गुरू ही इस धरा पर साकार परिमेश 
गुरू बिन शिष्य की पहचान नहीं रे
     गुरू बिन ज्ञान नहीं रे|
     गुरू बिन ज्ञान नहीं रे||

गुरू के अंदर ज्ञान का
 होता अटूट भंडार
जिसने अवगाहन कर लिया
समझो उसकी नैया पार
गुरू बिन निधान नहीं रे
     गुरू बिन ज्ञान नहीं रे|
     गुरू बिन ज्ञान नहीं रे||

रचयिता
रीनू पाल,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय दिलावलपुर,
विकास खण्ड - देवमई,
जनपद-फतेहपुर।

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