हम हैं शिक्षक

शिक्षा के हैं हम उपासक,
स्कूल कर्मभूमि हमारी,
सँवारने बच्चों का भविष्य,
धर्म-कर्म ड्यूटी हमारी।

हम वही हैं जिसने भारत,
को कई शासक दिलाए,
हम ही तो हैं जिसने दुश्मन,
के भी सारे दम्भ भुलाए।

हम वो जो पुस्तक को माता,
मान कर सम्मान देते,
हम की जो शून्य को भी,
ज्ञान का भण्डार कहते।

हम वही जो कोपलों से,
फूल गढ़ते हैं निरन्तर,
हम वही जो समझाते हैं,
हाथ पकड़ एक-एक अक्षर।

कितनी सदियों से सदा,
ज्ञान बाँट रहे हैं हम,
हम हैं शिक्षक, हम हैं शिक्षक,
हम हैं शिक्षक, राष्ट्र निर्माता-
शिक्षा सजग प्रहरी हैं हम।।

पढ़कर जीने के असल,
अंदाज सिखलाये हैं हमने,
संस्कारों के सकल,
रिवाज़ बतलायें हैं हमने।

हमने बतलाया जहाँ में,
देश का स्थान क्या है,
धर्म क्या है, क्षेत्र क्या है,
बोल क्या है, मान क्या है।

हमने दुनिया में शराफत,
का असर जिंदा किया है,
शिक्षा के स्तर को हमने,
सदैव सम्मानित किया है।

हम ना होते तो ये दुनिया,
अ से ज्ञ ना सीख पाती,
हम ना आते तो तरक्की,
इस कदर ना रीझ पाती।

हम ही तो द्रोण-चाणक्य,
आर्यभट्ट-टैगोर भी हम,,
हम हैं शिक्षक, हम हैं शिक्षक,
हम हैं शिक्षक, राष्ट्र निर्माता-
शिक्षा सज़ग प्रहरी हैं हम।।

रचयिता
राजीव कुमार गुर्जर,
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय बहादुरपुर राजपूत,
विकास खण्ड-कुन्दरकी
जनपद-मुरादाबाद।

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