मेला

आया मेला, आया मेला।
चारों ओर से उमड़ा लोगों का रेला।।

सब बच्चे हुए मगन, जाएँगे हम मेला।
घूमेंगे, मस्ती करेंगे, खाएँगे और खरीदेंगे केला।।

सब लगे जुटाने एक-एक पैसे,
कोई नहीं कर रहा खर्च फालतू पैसे।

कोई पूछे तुम क्या मेले में लोगे,
कोई पूछे तुम क्या मुझे खिलाओगे।

कोई पूछे तुम मेला कैसे जाओगे,
कोई पूछे तुम मेले में क्या खाओगे।

आया मेला सब बच्चे हो गए खुश,
सुबह से ही सब एक-दूसरे से चलने को रहे हैं पूछ।

ना कोई अब किसी के वश में,
सब हुए उतावले जल्दी पहुँचे मेले में।

सब पहने कपड़े नए और रंग-बिरंग,
कोई बैठा पापा के कंधे, तो कोई हो लिया मम्मी के संग।

आया मेला, आया मेला।
चारों ओर से उमड़ा लोगों का रेला।।

कोई खा रहा जलेबी, तो कोई छोला-चाट।
कोई पहुँचा मिठाई बाजार, तो कोई पहुँचा खिलौने के हाट।।

कोई खरीदा गुब्बारा, तो कोई खरीदा खिलौना।
कोई खरीदा हाथी-घोड़े, तो कोई खरीदा तोता-मैना।

हुई शाम सब घर को लौटे,
हुई सुबह सब स्कूल को पहुँचे।

बीता मेला, आई दीवाली।
चहुँओर फैली खुशहाली।।

रचयिता
शिराज़ अहमद,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय ददरा,          
विकास खण्ड-मड़ियाहूं,
जनपद-जौनपुर।

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