गाँव अपना सँवारें

चलो मिलके हम गाँव अपना सँवारें,
जहाँ में इसे श्रेष्ठतम हम बनाएँ।

बहुत अंधविश्वास फैला हुआ है,
अंधेरा कुरीति का छाया हुआ है,
चलो ज्ञान का दीप, सब मिल जलाएँ,
चलो मिलके हम गाँव अपना सँवारें।

नहीं गंदगी हो, तनिक भी कहीं पर,
लगे, स्वर्ग उतरा हो जैसे जमीं पर,
उगी झाड़ झंकार जड़ से उखाड़ें,
चलो मिलके हम गाँव अपना सँवारें।

निरक्षर नहीं हो कोई भी यहाँ पर,
चलो सबको हम दान  दें शब्द, आखर,
अलख शिक्षा का, सारे मिलकर जगाएँ,
चलो मिलके हम गाँव अपना सँवारें।

संस्कार, आचार खोने लगे हैं,
मनभाव दूषित से होने लगे हैं,
चलो नीति शिक्षा का फिर दौर लाएँ,
चलो मिलके हम गाँव अपना सँवारें।

नहीं एक दूजे से हो बैर मन में,
मनाएँ सभी के लिए खैर मन में,
"नरेश" अपनी माटी को मिलके सँवारें,
चलो मिलके हम गाँव अपना सँवारें।
       
रचयिता
नरेश चंद्र उनियाल,
सहायक अध्यापक,
राजकीय उच्च प्राथमिक विद्यालय घण्डियाली,
विकास क्षेत्र-थलीसैंण, 
जनपद-पौड़ी गढ़वाल,
उत्तराखण्ड।

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