जय हिन्दी

आज हिन्दी दिवस पर जोर शोर से मिलते बधाई और शुभकामना सन्देशों के बीच एक पुरानी याद आ गई।

बात उस समय की है जब कक्षा 11 में पढ़ता था, हमारे एक गुरु जी थे जिनके घर गणित की ट्यूशन पढ़ने जाया करता था। गुरु जी अपनी बेटी और नाती के साथ रहते थे। उनके नाती की उम्र यही कोई 5-6 वर्ष रही होगी..वो बच्चा कक्षा 1 में था। सुबह-सुबह हमारी पढ़ाई शुरू होने से पहले जब तक गुरु जी तैयार होकर आते,तब तक उस बच्चे की आदत बन गयी थी, वो हम सब जितने भी लोग पढ़ने आते थे,उन सबके साथ 5-10 मिनट खेल लेता था। फिर जब उसके नाना यानि गुरु जी जब मना करते कि आयुष जाओ ....मम्मी बुला रही हैं, तब ही वो अनमना होकर जाता था....

           क्लास शुरू होने से पहले यह रोज का ही नियम हो गया था कि आयुष सुबह सुबह आकर हम लोगों का साक्षात्कार जब तक ले नहीं लेते उनके दिन की शुरुआत नहीं होती थी......एक सुबह की बात है कि आयुष अपने नियम और आदत के अनुसार सुबह-सुबह हम सब के बीच खेलने में व्यस्त थे....तभी उनकी मम्मी की कड़क आवाज़ अंदर से आयी....आयुष चलो .. तैयार होना है... जल्दी से .....अभी स्कूल जाना है.....गुरु जी ने भी स्वर मिलाते हुए कहा...हाँ जाओ....आप आजकल बहुत शैतानी करने लगे हो... कल ही तुम्हारी टीचर का फोन आया था कि ये  स्कूल में हिन्दी में बात करता है.. अम्ब्रेला को छाता बोल रहा था कल।

        खैर आयुष तो अपराधी- सा भाव लिए मम्मी और नाना की डाँट खाकर अंदर तैयार होने के लिए चले गए।
पर ये बात मुझे अंदर तक जा लगी कि एक बच्चा जो कि अभी कुल 5 या 6 बरस का है...एक मध्यवर्गीय परिवार से सम्बन्ध रखता है और अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में शिक्षा पा रहा है..उसके मन में भाषा के प्रति क्या भाव जगाया जा रहा है...हिन्दी बोलने पर उसे अपराध बोध कराया जा रहा है....इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देश की मुख्य भाषा जहाँ हिन्दी है, वहाँ के विद्यालयों में हिन्दी के प्रति भावी नागरिकों में यह भाव अगर अभी से विकसित किया जाता रहा तो हिन्दी का सम्मान कैसे करेगा वो बच्चा जिसे हिन्दी बोलने पर डाँट मिलती हो।

         आज हिन्दी का परिदृश्य वैश्विक हो रहा है... हिन्दी  आज विश्व की आवश्यकता बन गई है....हिन्दी बाज़ार की भाषा है, हिन्दी व्यापार की भाषा बन गयी है...हिन्दी के कमतर मानने वाले आज हिन्दी की शरण में हैं...तभी तो बड़ी से बड़ी नेटवर्किंग साइट्स पर और मंचों  न केवल हिन्दी बल्कि हिन्दी की सहयोगी भाषाएँ भी वैश्विक मंचों की जरूरत बन गई हैं....आज भारत में सीमेंट बेचने वाले को टूटी फूटी हिन्दी में कहना ही पड़ता है-"सस्ता नाइ, सबसे अच्छा"

                वस्तुतः यह प्रसार आज की जरूरत के  कारण हुआ है जो कि अभी और होगा...

     दूसरे, हिन्दी संस्कार की भाषा है...हम लाख अंग्रेजी के गुण गा लें पर संस्कार देने का काम तो माँ ही करती है और वो केवल हिन्दी ही कर सकती है...आज के कंकड़ पत्थर वाले रास्तों पर चलने के लिए अंग्रेजी के जूतों की जरूरत जरूर है पर जब हिन्दी माँ के मंदिर में प्रवेश करें तो यह जूते बाहर ही उतर जाएँ तो अच्छा रहेगा.....
      
       हम अपनी पीढ़ी को अंग्रेजी की शिक्षा दें पर उन्हें तुलसी की मानस भी पढ़ाएँ, उन्हें सुभाषितानि भी पढ़ाएँ। तभी जीवन का कल्याण सम्भव है क्योंकि अंग्रेजी के 10 शब्दकोषों में मनुष्य जितना मनुष्य नहीं बन पाता, हिन्दी की एक चौपाई उतना सिखा देती है।

       अब बात आती है कुछ लोग हिन्दी के परिमार्जन और विशुद्धिकरण पर चिंतित होते हैं, जोकि थोड़ा स्वाभाविक है,पर हिन्दी की ग्रहण और आत्मसात क्षमता इतनी अधिक है कि न जाने कितनी भाषाओं के शब्द आज हिन्दी के न होकर भी हिन्दी के हो गए हैं...यह हिन्दी का ही चमत्कार है कि हम रन्स को रन्स न कहकर खुलेआम रनों बोलते हैं फिर भी हिन्दी की सुंदरता जस की तस बनी रहती है.....इसलिए हिन्दी की दुर्दशा पर रोने वालों चिंता मत कीजिए....हिन्दी माँ है और उसके कुनबे का विस्तार इतना ज़्यादा है कि उसके अस्तित्व पर कोई संकट नहीं आने वाला....गर्व कीजिए कि आप हिन्दी की सन्तति हैं....हिन्दी दिवस पर प्रण लीजिए कि अपनी भावी पीढ़ी में वो संस्कार देने हैं ताकि उसे भी हिन्दी पुत्र होने का गौरव हो।

जय हिन्द.....जय हिन्दी

लेखक
कुमार विवेक,
सहायक अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय पलौली,
विकास क्षेत्र-बेहटा,
जनपद-सीतापुर।

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