मित्रों मैं हिन्दी हूँ

हे री सखी कौन तू,
 दर्द मे है क्यों भला।
हैरान सी दिखती तू,
किसने तुझको छला।

अपने ही देश मे बेगानी,
किसको कहू मैं व्यथा।
तार-तार हो रही मेरी दशा
बिखर रही खुद की कथा।

जुबां  से तोड़ी गयी 
शब्दों में मरोड़ी गयी।
जैसे चाहा मिश्रित किया
या  फिर छोड़ी गयी।

कभी शब्द खो दिये मेरे,
कभी अर्थ ही बदल दिए।
कभी व्यंग्य में रखा मुझे,
मेरे छन्द ही छल  दिए।

ये कैसे लाल ग्वाल मेरे,
जो मुझको ही भुला गए।
सदियों से जगा रही इन्हें,
ये मुझको ही सुला गए।

हैं अरब  लाल मेरे,
भाषा सीखने मे क्या बुरा।
पर माँ को भूलकर भला
कहाँ चैन किसको मिला।

मै दम्भी नहीं हूँ री सखी,
 बस मान मेरा चाहिए।
भीख भी नही माँगती,
हाँ हिन्द में शान मेरी चाहिए।।

रचयिता
प्रेमलता सजवाण,
सहायक अध्यापक,
रा.पू.मा.वि.झुटाया,
विकास खण्ड-कालसी,
जनपद-देहरादून,
उत्तराखण्ड।

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