सृष्टि में मैं

कौन हूँ मैं, यही जिज्ञासा,
समझने चला जीवन की परिभाषा।
अनंत-अनंत ब्रम्हाण्ड में,
प्रचलित कालखण्ड में।
मैं अकिंचन लघु बिन्दु,
चेतना का है महासिन्धु।
अनगिनत जीवन के अस्तित्व,
सभी में संव्याप्त वही तत्व।
जन्म जीवन मरण,
उत्पत्ति उत्थान विराम।
चल रहा है अनूठा खेल,
सब नियमबद्ध गतिमान।
कहाँ से उद्गम है आदि,
यह सृष्टि अद्भुत अनादि।
सबमें वही चेतन स्पंदन,
प्राण काया  का एक बंधन।
काल का कालातीत स्वरूप,
चेतना का व्यापक यह रूप।
विविध हैं रचना के आयाम,
प्रकृति संचालित निष्काम।
              खोजने को जीवन का ध्येय,
              करने को अनावृत अज्ञेय।
              ज्ञान का लिए नित्य सम्बल,
              कर रहा हूँ पुरुषार्थ अविचल।
              मैं मनुज हूँ कर्म पथ पर चला,
               करने स्वयं का स्वयं से भला।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।


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