हिन्दी दिवस

मैं हूँ हिन्दी
भारत माँ के माथे की चमकती बिंदी

संस्कृत है मेरी माँ
हिन्दुस्तान है मेरा आसमां

घर-घर की बोली में मैं
भारत की संस्कृति में मैं
प्रेम में मैं, समरसता में मैं
भारत की अखंडता में मैं

दोहों, सोरठों व छन्दों में मैं
कवियों की चौपाइयों में मैं
गद्य में मैं, पद्य में मैं
लेखनी की विभिन्न विधाओं में मैं

कभी रसों में पिरोयी गयी
कभी अलंकारों से सजायी गयी
पर कभी न दिलों में बसायी गयी
और आज दिवसों में मनाई गयी

मैं समृद्ध, मैं अलंकृत
मैं ऊर्जित, मैं गर्वित
मैं दिवित , मैं अपरिमित
करो न मुझे दिवसों में सीमित

मैं हूँ तुम्हारा आत्मसम्मान
मुझसे ही है तुम्हारी पहचान

मैं हूँ तुम्हारी राष्ट्रभाषा
तुम्हारे प्रगति पथ की नहीं मैं बाधा

तुमसे बोल रहे भारतेन्दु
हिन्दी से हैं हम विश्व गुरु

कहें विवेकानंद, उठो युवाओं
अन्तर्राष्ट्रीय पहचान दिलाओ।

रचयिता
शालिनी श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय दवोपुर,
विकास खण्ड-देवकली, 
जनपद-गाज़ीपुर।

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