गीत स्वदेशी गाता हूँ
नहीं लीक पर चलना मुझको,
अपनी राह बनाता हूँ।
दरबारों के राग न गाऊँ,
गीत स्वदेशी गाता हूँ।।
सरकारें आनी-जानी है,
ये सदियों का फेरा है।
समय चक्र यूँ ही चलता है,
ये तो कभी न ठहरा है।।
ध्वज भारत का मैं तो हरदम,
मन ही मन फहराता हूँ।
दरबारों के राग न गाऊँ,
गीत स्वदेशी गाता हूँ।।
आजादी की बलि-वेदी पर,
लाखों शीश चढ़ाये थे।
देशभक्ति के जयकारे बस,
चारों और समाये थे।।
उन वीरों की कुर्बानी को,
जन-जन तक पहुँचाता हूँ।
दरबारों के राग न गाऊँ,
गीत स्वदेशी गाता हूँ।।
आजादी के दीवानों का,
टोला दर-दर घूमा था।
हँसते-हँसते परवानों ने,
खुद फाँसी को चूमा था।।
नेताओं के मन में उनको,
कहाँ आजकल पाता हूँ।
दरबारों के राग न गाऊँ,
गीत स्वदेशी गाता हूँ।।
रचयिता
प्रदीप कुमार चौहान,
प्रधानाध्यापक,
मॉडल प्राइमरी स्कूल कलाई,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।
अपनी राह बनाता हूँ।
दरबारों के राग न गाऊँ,
गीत स्वदेशी गाता हूँ।।
सरकारें आनी-जानी है,
ये सदियों का फेरा है।
समय चक्र यूँ ही चलता है,
ये तो कभी न ठहरा है।।
ध्वज भारत का मैं तो हरदम,
मन ही मन फहराता हूँ।
दरबारों के राग न गाऊँ,
गीत स्वदेशी गाता हूँ।।
आजादी की बलि-वेदी पर,
लाखों शीश चढ़ाये थे।
देशभक्ति के जयकारे बस,
चारों और समाये थे।।
उन वीरों की कुर्बानी को,
जन-जन तक पहुँचाता हूँ।
दरबारों के राग न गाऊँ,
गीत स्वदेशी गाता हूँ।।
आजादी के दीवानों का,
टोला दर-दर घूमा था।
हँसते-हँसते परवानों ने,
खुद फाँसी को चूमा था।।
नेताओं के मन में उनको,
कहाँ आजकल पाता हूँ।
दरबारों के राग न गाऊँ,
गीत स्वदेशी गाता हूँ।।
रचयिता
प्रदीप कुमार चौहान,
प्रधानाध्यापक,
मॉडल प्राइमरी स्कूल कलाई,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।
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