बनें हम भी दीप
जल उठे अनगिन दीप,
मिटा है सब अँधियार।
दिव्यतम उतरी ज्योति,
सुखद है यह उजियार।(१)
अमा का तम जो घनघोर,
टूटता देखो उसका गर्व।
विजय के जलते हैं दीप,
हमारा अनुपम यह पर्व।(२)
सभी हों सुखमय-समृद्ध,
यही मंगलमय शुभ भाव।
करें हम ऐसा ही पुरुषार्थ,
मिटाने को शेष अभाव।।(३)
मनोमय जो है अँधियार,
मिटा दो तुम अबकी बार।
उतारो अतिमानस रेख,
नवल नव भरो विचार।(४)
शुभ्र शुचिता के शुभ भाव,
सरस समता समभाव।
सभी में जागृत हों आज,
मिटें सब भेद व दुर्भाव।५)
मनुजता है सच्चा धर्म,
प्रसारित हों यही विचार।
बनें हम सब दीप समान,
मिटाना है मन अँधियार।(६)
मिटा है सब अँधियार।
दिव्यतम उतरी ज्योति,
सुखद है यह उजियार।(१)
अमा का तम जो घनघोर,
टूटता देखो उसका गर्व।
विजय के जलते हैं दीप,
हमारा अनुपम यह पर्व।(२)
सभी हों सुखमय-समृद्ध,
यही मंगलमय शुभ भाव।
करें हम ऐसा ही पुरुषार्थ,
मिटाने को शेष अभाव।।(३)
मनोमय जो है अँधियार,
मिटा दो तुम अबकी बार।
उतारो अतिमानस रेख,
नवल नव भरो विचार।(४)
शुभ्र शुचिता के शुभ भाव,
सरस समता समभाव।
सभी में जागृत हों आज,
मिटें सब भेद व दुर्भाव।५)
मनुजता है सच्चा धर्म,
प्रसारित हों यही विचार।
बनें हम सब दीप समान,
मिटाना है मन अँधियार।(६)
रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला,
जनपद -सीतापुर।
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