विकसित हो नित्य प्रकाश नया

अंतर्मन से मिटे अंधेरा, विकसित हो नित्य प्रकाश नया
शुभ मंगल सिद्ध हो दीप पर्व, उपजे मन में उल्लास नया

आलोक प्रसारित हो जग में, यह दीपक पर्व विशेष बने
ज्यों तिमिर विजय करके प्रभुवर श्रीरामचन्द्र अवधेश बने

हे अन्तर्यामी त्रिलोकनाथ जगत को सुख प्रदान करो
आनंदयुक्त यह वसुधा हो, कुछ ऐसा दिव्य विधान करो

रश्मियाँ प्रस्फुटित हों सुख की, ऐसे विकसे आदित्य यहाँ
समरस, समभाव, सरलता का वातावरण हो नित्य जहाँ

वाणी में मृदुल सरसता हो, मन मानस नित्य सुशील रहे
हम रहें सदा ही विनययुक्त, खुशियों की दीप्त कंदील रहे

सम्पदा ज्ञान की रक्षित हो, विद्या से नित अनुराग रहे
हे मातु शारदे! वर देना, जलता ये सदा चिराग रहे

जब तक वसुधा पर जीवन है, ना ज्ञान-राशि से हीन रहें
ऋद्धि सिद्धि सम्पदा ज्ञान का वैभव अमर नवीन रहे

हम बनें ज्ञान के ध्वजवाहक, जीवित सब हमसे साज रहें
अनुराग, ज्ञान, वैभव, विद्या पर सदा मनुज का राज रहे।।

रचयिता
कुमार विवेक,
सहायक अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय पलौली,
विकास क्षेत्र-बेहटा,
जनपद-सीतापुर।

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