रिश्ते

जो रिश्ते बहुत ही जोश-खरोश के साथ शुरू होते हैं। कई बार वो उतनी ही जल्दी टूट जाते हैं और खास बात यह होती है, ऐसे रिश्तों के वाहक यह सोचकर तसल्ली कर बैठते हैं कि जाने दो न। वो कौन हमारे सगे थे...दो चार लोग जीवन में पहले नहीं थे तो क्या जीवन नहीं था या फिर कोई चला गया तो क्या उसके बग़ैर जिन्दगी रुक जाएगी। यही मानकर वो जीवन में आगे बढ़ जाते हैं। कहीं न कहीं ये मानकर कि जिससे वो रिश्ता रखे थे वो भी उन्हीं की तरह अपने को उसी राह पर फिर से ले आएगा जिन राहों पर वो पहले था। पर हर बार यह सोच सही नहीं होती हो सकता है कि उससे जिससे आपने चंद दिनों का रिश्ता यह मान कर भुला दिया हो कि जाने भी दो वो कौन अपना सगा था?
सब कुछ फिर ठीक हो जाएगा, कोई किसी के बिना जीना नहीं छोड़ देता। हाँ ये भी एक सच है, कोई इतनी आसानी से साँसों का साथ नहीं छोड़ देता। दुनिया में हर कोई अनाथ नहीं है, सबके जीवन को आधार देने के प्रकृति ने कुछ रक्त सम्बन्ध बनाये हैं वो अच्छे या बुरे हों हम उनसे दूर नहीं भाग पाते। हमारे माता-पिता, भाई-बहन में क्या कोई कमी नहीं होती? हाँ होती है। फिर भी हम उन्हें छोड़ तो नहीं देते...

जीवन में रिश्ते बनाना बहुत सरल है परन्तु रिश्तों में जीवन बनाये रखना बहुत कठिन और धैर्य का काम है। हमें बहुत सी कमियाँ और गलतियाँ भुलानी पड़ती हैं सामने वाले की तब रिश्ते जिन्दा रह पाते हैं। किसी भी रिश्ते से यूँ ही नहीं मुँह मोड़ लेना चाहिए क्योंकि जब कोई रिश्ता टूटता है या खत्म होता है तो साथ ही टूटती हैं बहुत सारी उम्मीदें। 

वो उम्मीदें जो व्यक्ति चंद दिनों के लगाव में आपसे कर लेता है, टूटता है एक विश्वास जो एक दूसरे के बीच कायम हो जाता है और ये विश्वास तथा उम्मीदों का सिलसिला यहीं नहीं खत्म होता बल्कि ये उम्र भर के लिए जहर सा बन जाता है जो किसी अन्य पर भी फिर इतनी आसानी से लौटकर नहीं आता। इसलिए कभी कोई रिश्ता इतनी आसानी से न तोड़ें क्योंकि हो सकता है जिस समय आपकी जरूरत उस शख्स को सबसे ज्यादा हो बिल्कुल डूबते को तिनके के सहारे की तरह। उस समय आप यह सोचकर अलग हो जाएँ कि जाने दो वो कौन अपना खून था? कौन सगा रिश्ता था उससे? दुनिया बहुत बड़ी है, सब ठीक हो जाएगा। कुछ सही नहीं होता बल्कि यहीं से निर्मित होता है एक नया नजरिया जिसे लोग अनुभव का नाम देकर जिन्दगी की गाड़ी आगे धकेलने की जद्दोजहद करते हैं। ऐसा अनुभव जो व्यक्ति को बदलकर रख देता है और वो व्यक्ति वैसा हो जाता है जैसा वो वाकई में होता नहीं है। अतः जब भी जीवन में कोई रिश्ता शुरू करें या खत्म करें, तनिक विचार जरूर कर लें क्योंकि साँसों की लड़ी का बिखरना ही मृत्यु नहीं कहलाता, मन का मर जाना भी मौत से कम नहीं होता।

लेखक
कुमार विवेक,
सहायक अध्यापक,
उच्च प्राथमिक विद्यालय पलौली,
विकास क्षेत्र-बेहटा,
जनपद-सीतापुर।

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