वर्ल्ड फूड डे

धन्य भाग्य है हमने पाया,
मानव रूपी जन्म है आया,
अच्छे कुल में जीवन पाया,
अहो! भाग्य...
पेट भरकर खाना पाया।

रोज़ न जाने कितने गरीब
भूखे ही सो जाते हैं।
आँतें सिकुड़ती पेट में
खाना जो न पाते हैं।
पर अपनी लाचारी से
बेबस ही रह जाते हैं।।

रोज़ न जाने कितने अमीर
खाना बिगाड़ आते हैं।
फेंक देते सड़कों पर
थाली से निबटा जब न पाते हैं।
और अपनी शानो शौकत पर
जी भर कर इतराते हैं।।

प्रकृति के संसाधन पर
सबका बराबर हक़ बनता है।
संसाधन का दुरुपयोग करें
ये ना किसी को जँचता है।
उस देश में खाने की बदहाली
जहाँ भूखी इतनी जनता है।।

अपना कर्तव्य, अपनी शपथ
आओ मिलकर अदा करेंगे।
ना खाने को फेंकेंगे और
ना किसी को फेंकने देंगे।
राष्ट्र हित में हम सबका
इतना फ़र्ज़ तो बनता है।
इतना फ़र्ज़ तो बनता है।।

रचयिता
ज्योति चौधरी,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय इस्लामनगर
विकास खण्ड-मुरादाबाद,
जनपद-मुरादाबाद।

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