प्लास्टिक युग

एक बार के लिए हे मनुज
धरती की करूण पुकार सुनो।
खुद के सुख में खोए तुम हो
क्या कहे हवा एक बार सुनो।
भौतिकता की चाहत में तुम
जल, वायु, धरा को भूलो मत।
बहुत हुआ अब करो फैसला
निर्णय कठिन से चूको मत।।
 वरदान मिला है प्रकृति से
संसाधन हमारी संपत्ति है
अनुचित दोहन से तुमने क्यों
अपनी बढ़ायी विपत्ति है?
मृतिका से लौह युग तक
तुमने अच्छा विकास किया।
प्लास्टिक युग की बारी है
जिसने धरा का विनाश किया।
ना सड़ती है ना गलती है
कूड़े के ढेरों मे बदलती है।
करती जल प्रवाह अवरूद्ध
प्रकृति को सतत निगलती है।
पॉलीथीन की थैली क्यों
जीवन में बहुत जरूरी है।
हम इसके बिना रह ना सके
अब ऐसी भी क्या मजबूरी है।
अब नहीं-नहीं बस बन्द करो
कुछ नये बेहतर प्रबन्ध करो।
पॉलीथीन ही क्यों भाई
उसके सारे रूपों पर बैन लगे।
चोक हो चुकी इस धरती के 
हिस्से में थोडी चैन लगे।
   
रचयिता
शीला सिंह,
सहायक अध्यापक,
पूर्व माध्यमिक विद्यालय विशेश्वरगंज,
नगर क्षेत्र-गाजीपुर,
जनपद-गाजीपुर।

Comments

  1. सुन्दर व यथार्थ अभिव्यंजना

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