वो किसान है

पेट हमारा भर कर वो तो,
खुद भूखा ही सो जाता है।
वो किसान है खुद मिटकर जो,
जग का पालन कर जाता है।।

धन की आस कहाँ होती वो,
जीवन सादा ही जीता है।
उसको धीरज कौन बँधाता,
अपने आँसू खुद पीता है।।

मिट्टी में पैदा होकर वो,
खुद मिट्टी में मिल जाता है।
वो किसान है खुद मिटकर जो,
जग का पालन कर जाता है।।

वर्षा हो या धूप कड़ी हो,
वो निज पथ से कब डिगता है।
जाने कौन घड़ी में मालिक,
उसकी किस्मत को लिखता है।।

जीवन उसका जग की खातिर,
जग की खातिर मर जाता है।
वो किसान है खुद मिट कर जो,
जग का पालन कर जाता है।।

कष्टों में जीवन है पलता,
कष्टों से लड़ता वह प्रतिदिन,
और सदा कष्टों में ही तो,
कटते उसके रात और दिन।।

उसकी खाक उड़ती खेतों पर,
बेटा शहीद हो जाता है।
वो किसान है खुद मिट कर जो,
जग का पालन कर जाता है।।

रचयिता
प्रदीप कुमार चौहान,
प्रधानाध्यापक,
मॉडल प्राइमरी स्कूल कलाई,
विकास खण्ड-धनीपुर,
जनपद-अलीगढ़।

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