दो का पहाड़ा

दो एकम दो हैं होते,
अच्छे बच्चे कभी न रोते।
दो दूनी चार कहाते,
अच्छे बच्चे पढ़ने जाते।
दो तियाँ छह तुम बोलो,
जब भी बोलो मीठा बोलो।
दो चौके होते आठ,
याद कीजिए अपना पाठ।
दो पंचे दस, दो पंचे दस,
सड़क पे जाए देखो बस।
दो छक्के बारह होते जानो,
सदा बड़ों का कहना मानो।
दो सते होते चौदह,
बड़ा कीमती पेड़ व पौधा।
दो अट्ठे सोलह कहिए,
साफ सजीले बनकर रहिए।
दो नौवें जानो अठारह,
सुन्दर-सुन्दर स्कूल हमारा।
दो दहम बीस, दो दहम बीस,
सदा झुकाओ प्रभु को शीश।
कर लो याद पहाड़े,
आते काम हमारे।
बरसा, गर्मी, जाड़े,
हर दिन पढ़ो पहाड़े।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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