एक वीर का प्रण

तन समर्पित, मन समर्पित
जीवन का हर क्षण समर्पित
हे मातृभमि! अमर है तेरा हर कण
शपथ मुझे, चुकाऊँगा तेरा है जो ऋण
शौर्य, पराक्रम और साहस के गहनों से सुसज्जित आज
तिरंगा ले, कफन सिर बाँधे, घर से निकला हूँ आज
माँ मत भूल कि जननी तू है वीरों की
बस, शामत आ गई अब काफिरों की
दुश्मनों के लहू से, चरण पखारूँगा तेरे
आज न बच पाएगा, जो भी आएगा समक्ष मेरे
नापाक इरादों से जो कर रहे हैं प्रयास
कीमत चुकानी होगी भारी जो किया गर दुस्साहस
इरादे कायरों के कभी न सफल होते हैं
भारतीय वीरों के समक्ष हर षडयंत्र विफल होते हैं
मैं रहूँ या न रहूँ, नहीं इसका कोई मलाल
माँ भा गया मेरे मन को, लहू के रंग का गुलाल
अखण्ड भारत का स्वप्न जल्द ही सच होगा
सकल विश्व में माँ तेरे गौरव का परचम होगा।

रचयिता
सुमन शर्मा,
इं. प्रधनाध्यापक
पूर्व माध्यमिक विद्यालय मांकरौल,
विकास खण्ड - इगलास,
जनपद - अलीगढ़।

Comments

  1. बहुत सुन्दर रचना सुमन मैम जी !! एक वीर का जीवन परोपकार , स्नेह , राष्ट्रोत्सर्ग और त्याग की भावनाओ से ओत - प्रोत होता है और अंतत : आत्म -बलिदान देकर अपने वतन को दुश्मनों से रक्षा करना होता है ।
    हम भी वीर बनें और अपने जीवन को साकार बनायें । प्रेरणादायक कविता की रचना करने के लिए आपकोओ कोटि - बधाईयां और दिल से आभार !!

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