दीपों की दीवाली

आओ मनाएँ नव दीपों से दीवाली,
विस्तृत हो ज्ञान किरण उजियाली।

अंचल-अंचल ज्ञान किरण का,
अब फैले शुभ उजियारा।
नई दिशा में आओ चल दें,
फिर बदले युग की धारा।
उतरे शाश्वत तेजस धारा,
मिट जाए रात अमा सी काली।
देश हमारा यह बने समुन्नत,
हो जन-जन में खुशहाली।
   आओ मनाएँ नव दीपों से दीवाली।

बच्चा-बच्चा देश का अपने,
अब ज्योति पुँज बन जाए।
प्रतिभा प्रखर जगा दें आओ,
अब प्रज्ञा प्रकाश भर जाए।
हे! शिक्षक युग के निर्माता हो,
तुम मानवता उपवन के माली।
हे! दिव्य ज्ञान के स्रोत अनूठे,
तुम भर दो ज्योति निराली।
    आओ मनाएँ नव दीपों से दीवाली।

कभी उठाते गिरि को गिरधारी,
कभी उन्हीं से उपजी गीता न्यारी।
आज उठाओ दायित्व सभी तुम,
अब आई है अपनी भी बारी।
मत पीछे पाँव खींचना अपने,
तुममें है प्रतिभा की वह लाली।
यह सारा समाज है देख रहा,
तुममें परिवर्तन की शक्ति निराली।
     आओ मनाएँ नव दीपों से दीवाली।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

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