बचपन
कितना सुंदर दिन बचपन का,
न कोई बोझ और न ही कोई तनाव।
बचपन में मिलता है सभी का भरपूर प्यार,
ना किसी से झगड़ा, न ही किसी से तकरार।
जब लगी भूख, बस लगे रोने,
खूब करते भाग-दौड़, थक जाने पर लगे सोने।
मिलती माँ की ममता और पिता का प्यार,
कितना प्यारा होता है, बचपन का संसार।
भाई-बहन जब लौटते स्कूल से, लेते उठा गोद,
फिर करते खूब प्यार, बाकी काम छोड़।
घर पर जब कुछ आता है, मिलता सबसे पहले,
गलती करें हम डाँट किसी और को मिले।
अगर माँ से डाँट मिले तो पिता से मिलता प्यार,
कभी भाई-बहन करते प्यार तो कभी देते मार।
समय से मिलता खाना और खाकर खूब सोना,
ना कोई रोके, ना कोई टोके, मस्त होकर सोना।
जब हुए थोड़े बड़े तो चल दिये स्कूल,
दोस्तों संग मस्ती करते, खूब उड़ाते धूल।
स्कूल में मिलता सर और मैम का ढेर सारा प्यार,
कितना प्यारा होता है बचपन का संसार।
रचयिता
शिराज़ अहमद,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय ददरा,
विकास खण्ड-मड़ियाहूं,
जनपद-जौनपुर।
न कोई बोझ और न ही कोई तनाव।
बचपन में मिलता है सभी का भरपूर प्यार,
ना किसी से झगड़ा, न ही किसी से तकरार।
जब लगी भूख, बस लगे रोने,
खूब करते भाग-दौड़, थक जाने पर लगे सोने।
मिलती माँ की ममता और पिता का प्यार,
कितना प्यारा होता है, बचपन का संसार।
भाई-बहन जब लौटते स्कूल से, लेते उठा गोद,
फिर करते खूब प्यार, बाकी काम छोड़।
घर पर जब कुछ आता है, मिलता सबसे पहले,
गलती करें हम डाँट किसी और को मिले।
अगर माँ से डाँट मिले तो पिता से मिलता प्यार,
कभी भाई-बहन करते प्यार तो कभी देते मार।
समय से मिलता खाना और खाकर खूब सोना,
ना कोई रोके, ना कोई टोके, मस्त होकर सोना।
जब हुए थोड़े बड़े तो चल दिये स्कूल,
दोस्तों संग मस्ती करते, खूब उड़ाते धूल।
स्कूल में मिलता सर और मैम का ढेर सारा प्यार,
कितना प्यारा होता है बचपन का संसार।
रचयिता
शिराज़ अहमद,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय ददरा,
विकास खण्ड-मड़ियाहूं,
जनपद-जौनपुर।
सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDelete