दीपावली

दिया जले प्रेम का ऐसे  कि दिल रोशन कर पाये
अन्धेरा किसी राही के राह का रोड़ा न बन पाये।

यूँ सजाएँ दीपोत्सव विचार, जन मन तक छू पायें
प्रगतिपथ समाज की ओज विचारशक्ति जग पायें।

दीन जन-मन मे प्रेमदीप जला मीत वचन अपनायें
हर चेहरे पर हो मुस्कान यूँ फुलझड़ियाँ  जला पायें।

कितना पावन पर्व है ये इसकी महिमा के गुण गाएँ
रावण वध कर पुरुषोत्तम राम अयोध्या वापस आए।

नरकासुर वध कर कृष्ण वृन्दावन- मथुरा को हर्षाए
भगवान महावीर का पावन निर्वाण दिन कहलाए।

सिखों के छठे गुरु हरगोविंद सिंह जेल रिहाई पाए
खुशियाँ बढ़ाती गोवर्धन पूजा  पशु प्रेम सिखाए।

खील, खिलौने, बताशे, उपहार, मेवे और मिठाइयाँ
बल्बों की लड़ियाँ और रंग -बिरंगे फूलों की मालाएँ।

भूले बिसरे रिश्तों मे जुड़ती अपनेपन की कडियाँ।
आज मनाते हम इस दिन को जीत रही अच्छाइयाँ।

लक्ष्मी गणेश को मनाकर दीप जला खुशियाँ मनाएँ
भाई बहन भी भाईदूज मनाकर  प्रेम-भाव-रस पाएँ।

रचयिता
प्रेमलता सजवाण,
सहायक अध्यापक,
रा.पू.मा.वि.झुटाया,
विकास खण्ड-कालसी,
जनपद-देहरादून,
उत्तराखण्ड।

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