पॉलीथिन
नीली-पीली, हरी-गुलाबी,
या फिर काली- काली;
घूम रही है नगर-गाँव में,
हाथ पकड़ कर खाली।
कोई इसमें सब्जी डाले,
कोई खाना भी खा ले;
कोई बाँध पोटली इसकी
देखो! फ्रिज में है डाले।
रोगों की जननी है थैली
मन की मैली- मैली;
परेशान लोगों को करके
अहंकार में है फैली।
पॉलीथिन की बात निराली
ये है विष की घरवाली;
मानव जीवन का सुख हर
झूम रही है मतवाली।
बच्चों यह अनबूझ पहेली
विष की बनी सहेली;
मानव-जीवन छीन रही
कर-कर-कर अठखेली।
पॉलीथिन को नहीं छुएँगे
चलो! शपथ लें मिलकर;
कपड़े के थैले में लाएँ
केला मूली गाजर।
बच्चों! तज कर पॉलीथिन
सुन्दर धरा बनाओ;
आलू, मटर, टमाटर, शलजम
झोले में लेकर आओ।
रचयिता
रणविजय निषाद(शिक्षक),
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कन्थुवा,
विकास खण्ड-कड़ा,
जनपद-कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश)।
या फिर काली- काली;
घूम रही है नगर-गाँव में,
हाथ पकड़ कर खाली।
कोई इसमें सब्जी डाले,
कोई खाना भी खा ले;
कोई बाँध पोटली इसकी
देखो! फ्रिज में है डाले।
रोगों की जननी है थैली
मन की मैली- मैली;
परेशान लोगों को करके
अहंकार में है फैली।
पॉलीथिन की बात निराली
ये है विष की घरवाली;
मानव जीवन का सुख हर
झूम रही है मतवाली।
बच्चों यह अनबूझ पहेली
विष की बनी सहेली;
मानव-जीवन छीन रही
कर-कर-कर अठखेली।
पॉलीथिन को नहीं छुएँगे
चलो! शपथ लें मिलकर;
कपड़े के थैले में लाएँ
केला मूली गाजर।
बच्चों! तज कर पॉलीथिन
सुन्दर धरा बनाओ;
आलू, मटर, टमाटर, शलजम
झोले में लेकर आओ।
रचयिता
रणविजय निषाद(शिक्षक),
पूर्व माध्यमिक विद्यालय कन्थुवा,
विकास खण्ड-कड़ा,
जनपद-कौशाम्बी (उत्तर प्रदेश)।
अति सुंदर एवं ज्ञानवर्धक कविता।।
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