महामानव

कर्म से करते सृजन,
संवेदन से पूरित नयन।
त्याग का वैभव अपार,
सुखमय बनाने संसार।
सुखद जिनके विचार।
करते हैं मानवता का,
वह हर क्षण उपकार।

दायित्व का कर बोध,
अनगिनत पथ अवरोध।
अविराम चलते जाते,
नये रास्ते हैं बनाते।
न रुकते सतत चलते।
न ही उनके चरण थकते।

प्रतिगामिता पर विजय,
आत्मबल से भरा निश्चय।
अपमान, अवज्ञा, विरोध,
उसी में करते नव शोध।
रखते हैं एकात्म भाव,
प्रेम पूरित होता स्वभाव।

स्थितिप्रज्ञ, योगवित्तम से,
सींचते धरा नित श्रम से।
तपते हैं अपनाते कष्ट,
ताकि मिले पथ अभीष्ट।
बना जाते शाश्वत राह,
चले जाते अनंत की ओर।

रचयिता
सतीश चन्द्र "कौशिक"
प्रधानाध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय अकबापुर,
विकास क्षेत्र-पहला, 
जनपद -सीतापुर।

Comments

  1. बहुत ही सराहनीय उत्कृष्ट

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