६४- सुनील कुमार त्रिपाठी (सुमन) प्रा० वि० रुदवालिया, फाजिलनगर, कुशीनगर

मित्रो आज हम मिशन शिक्षण संवाद के माध्यम से आपका परिचय जनपद- कुशीनगर से बेसिक शिक्षा के   आदर्णीय अनमोल रत्न कवि हृदय वात्सल्यता की प्रतिमूर्ति  भाई सुनील कुमार त्रिपाठी सुमन जी से करा रहे हैं। जिन्होंने हम सबको विद्यालय बदलने की ऐसी अद्भुत अटल जी की कविता से “ हार नहीं मानूँगा, रार नहीं ठानूगा„  से प्रेरित होकर अटल सीख दी है जो निश्चित ही किसी भी विद्यालय को बदलने के लिए, शिक्षक के लिए महामंत्र का काम कर सकती है। आपके प्रयास हम सबको सिखाते है और दिखाते है कि---
“कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती है,
लहरों से डर कर कभी नौका पार नहीं होती है।
आपने अपने विद्यालय को बेसिक शिक्षा की अव्यवस्थित व्यवस्था के बीच से निकाल कर कॉन्वेन्ट, प्राइवेट और स्वतंत्र कहे जाने वाले विद्यालयों को अपने प्रयासों से ऐसी चुनौती प्रदान की, जिससे लगभग दो दर्जन प्राइवेट स्कूलों के विद्यार्थियों सहित आपके विद्यालय में लगभग 350 बच्चों का नामांकन आपकी सफलता की कहानी प्रमाणित करती है।
तो आइये जानते है आदर्णीय सुमन जी के सराहनीय प्रयासों की सत्य कथा:---


मैं सुनील त्रिपाठी कुशीनगर जनपद के अन्तर्गत फाजिलनगर विकासखण्ड के प्रा वि रुदवालिया में 1 जुलाई सन्-2010 को प्रधानाध्यापक के पद पर नियुक्त हुआ। पांच हजार आबादी वाले गांव में अधिकतर लोग दिहाड़ी मजदूर थे। दो शिक्षामित्र साथियों के भरोसे संचालित विद्यालय में बच्चों का नामांकन करीब 150 था, लेकिन उपस्थित निराशाजनक थी। विद्यालय परिसर में चाहरदिवारी नहीं होने के कारण दोपहर बाद प्रतिदिन बाजार लगता था। बच्चों में पढ़ाई का माहौल बनाने के लिये पहले तत्कालीन श्रीमान  बीएसए सर से मिलकर चाहरदिवारी का निर्माण कराया। पहले अपने धन से विद्यालय में मिटटी कार्य कराया जिससे परिसर में जल भराव से मुक्ति मिली। परिसर में स्थित पीपल के वृक्ष का चबूतरा बनवाया ताकि उसकी छांव में बच्चे बैठ सकें। बेहतर शिक्षा के लिये बगल के विद्यालय के शिक्षामित्र साथी का सहारा लिया। फिर क्या था नामांकित बच्चों की संख्या बढ़ने लगी। सन्-2012 में सभी बच्चों को टाई बेल्ट और रोज आने वाले बच्चों को अपने वेतन से जूता मोजा देना शुरू किया। 2013 की वार्षिक परीक्षा में अच्छे अंक लाने वाले बच्चों को दीवाल घड़ी , थाली ,गिलास ,टिफिन बॉक्स आदि देने के बाद अभिभावकों ने सराहना की। विद्यालय के पांच सौ मीटर के दायरे में सात निजी विद्यालय होने के कारण मेरा प्रयास फेल हो गया और मेरे विद्यालय के 31 बच्चे कान्वेंट विद्यालय में चले गये। मैंने श्री अटल जी की एक कविता-- "हार नहीं मानुगा" ,,,,,,,,,,, का संकल्प लेकर पन्द्रह अगस्त 2013 को बच्चों में पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक संकल्पना की सोच लेकर दो दो महोगनी के पौधे वितरित किये। गांव के लोगों की मीटिंग बुलाकर उनसे केवल एक माह के लिये बच्चों को भेजने का वचन लिया। इस बीच अपनी जेब से 78 हजार रूपये खर्च कर विद्यालय को नया स्वरूप दिया। सप्ताह में दो दिन शाम छ बजे से रात 8 बजे तक किसी अभिभावक के दरवाजे पर शिक्षक छात्र चौपाल शुरू किया। जिसमें अभिभावकों के समक्ष बच्चों को पढ़ाना शुरू किया।अनुपस्थित बच्चों की डायरी बनाकर उनके अभिभावकों से मिलना प्रारम्भ किया। आशातीत सफलता मिली । बच्चों की संख्या 339 हो गयी। जिसमे तीन बच्चे विद्यालय छोड़े। मासिक टेस्ट की रिपोर्ट अभिभावकों से बताने , साफ़ सुथरे बच्चों को , सर्वाधिक उपस्थित रहने वाले बच्चों को , अच्छे नम्बर लाने वाले बच्चों को क्षेत्र के चर्चित लोगों से पुरस्कृत कराना शुरू किया। आज विद्यालय में करीब 350 बच्चे हैं। विद्यालय की सुंदरता इतनी भब्य है कि लोग उसके आगे फोटो खींचवाने आने लगे है । विद्यालय में श्रीमान जिलाधिकारी महोदय तथा मेरे बीईओ सर के असीम सहयोग से पर्याप्त शिक्षक भी हो गये हैं। उत्साहजनक बात यह है कि 27 बच्चे कान्वेंट विद्यालय के भी पढ़ने आ रहे हैं जिन्हें छह तरफ की प्रार्थना , सांस्कृतिक कार्यक्रम , योगा, राष्ट्रमन्त्र ,भोजनमन्त्र ,अभियान और वन्देमातरम गीत , पीटी , और सामान्य ज्ञान , आज की बात , आज का अखबार आदि कार्यक्रम कौतुहल लगने लगे हैं। विद्यालय के गमले में लगे  फूल , पौधे और साज सज्जा भाने लगी है। डेस्क ब्रेंच तथा सभी कमरों में दो-दो पंखों के साथ लेपटाप से दी जाने वाली शिक्षा के बाद वच्चों की उपस्थिति और मनोबल बढ़ा रही है।
अपने शिक्षक सहयोगियों को अपनी स्वरचित रचना जरुर सुनाता हूँ कि--
““हम खा कमा रहे हैं इसे कम नहीं समझ,
हम नाच गा रहे हैं इसे कम नहीं समझ।
अनपढ़ थे बाप दादा हमारे ऐ सुमन,
बच्चे पढ़ा रहे हैं इसे कम नहीं समझ।।
सुनील त्रिपाठी (प्र० अ०)
प्रा०वि० रुदवालिया
वि० खण्ड- फाजिलनगर
जनपद -कुशीनगर
मित्रो आपने देखा कि किस प्रकार आपकी पहल से विद्यालय को उस स्थान तक पहुँचा दिया है कि आज विद्यालय गाँव का गौरव बन गया है जहाँ लोग खुशी के क्षण शेयर कर फोटो खिचाने आते है। यह सब क्यों हुआ, कैसे हुआ उसका उत्तर शायद आप को मिल गया होगा। वह है एक शिक्षक की पहल। जो शिक्षक भाई सरकार या समाज को आगे आकर करने का इन्तजार कर रहे वह शायद अपनी शक्ति और क्षमताओं को भूल रहे हैं जिसे हमारे मिशन शिक्षण संवाद के अनमोल रत्न याद दिलाने के लिए आपको अपने प्रयासों से अवगत कराते रहते हैं।
मिशन शिक्षण संवाद की ओर से बेसिक शिक्षा के प्रेरणा स्रोत आदर्णीय सुनील त्रिपाठी जी एवं उनके सहयोगी विद्यालय परिवार को उज्जवल भविष्य की कामना के साथ बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
मित्रो आप भी यदि बेसिक शिक्षा विभाग के सम्मानित शिक्षक हैं या शिक्षा को मनुष्य जीवन के लिए महत्वपूर्ण और अपना कर्तव्य मानते है तो इस मिशन संवाद के माध्यम से शिक्षा एवं शिक्षक के हित और सम्मान की रक्षा के लिए हाथ से हाथ मिला कर अभियान को सफल बनाने के लिए इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने में सहयोगी बनें और शिक्षक धर्म का पालन करें। हमें विश्वास है कि अगर आप लोग हाथ से हाथ मिलाकर संगठित रूप से आगे बढ़े तो निश्चित ही बेसिक शिक्षा से नकारात्मकता की अंधेरी रात का अन्त होकर रोशनी की नयी किरण के साथ नया सबेरा अवश्य आयेगा। इसलिए--
आओ हम सब हाथ मिलायें।
बेसिक शिक्षा का मान बढ़ायें।।
नोटः- यदि आप या आपके आसपास कोई बेसिक शिक्षा का शिक्षक अच्छे कार्य कर शिक्षा एवं शिक्षक को सम्मानित स्थान दिलाने में सहयोग कर रहा है तो बिना किसी संकोच के अपने विद्यालय की उपलब्धियों और गतिविधियों को हम तक पहुँचाने में सहयोग करें। आपकी ये उपलब्धियाँ और गतिविधियाँ हजारों शिक्षकों के लिए नयी ऊर्जा और प्रेरणा का काम करेंगी। इसलिए बेसिक शिक्षा को सम्मानित स्थान दिलाने के लिए हम सब मिशन शिक्षण संवाद के माध्यम से जुड़कर एक दूसरे से सीखें और सिखायें। बेसिक शिक्षा की नकारात्मकता को दूर भगायें।
उपलब्धियों का विवरण और फोटो भेजने का WhatsApp no- 9458278429 है।
साभार: शिक्षण संवाद एवं गतिविधियाँ
 
विमल कुमार
कानपुर देहात
04/01/2017

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