१५१- प्रमोद कुमार सिंह, पू०मा० वि० उसका, पिपराइच, गोरखपुर
मित्रों आज हम आपका परिचय मिशन शिक्षण संवाद के माध्यम गुरू गोरखनाथ जी की पवित्र भूमि जनपद- गोरखपुर से बेसिक शिक्षा के अनमोल रत्न शिक्षक भाई प्रमोद कुमार सिंह जी से करा रहे हैं। जिन्होंने अपनी सकारात्मक और कुछ नया करने की अनुकरणीय सोच से अपने विद्यालय को शून्यवत स्थिति से अनुकरणीय शिखर की ओर पहुँचा दिया। आज जहाँ बहुत से विद्यालयों के शिक्षक ग्राम प्रधान की लालची व्यवहारिकता से परेशान रहते हैं, वही आपको मानवता के रक्षक जनप्रतिनिधि ग्राम प्रधान जी का भी आपके सहयोगात्मक व्यवहार से अनुकरणीय सहयोग मिला।
तो आइये जानते हैं भाई प्रमोद कुमार सिंह जी के अनुकरणीय एवं सराहनीय प्रयासों को:-
प्रमोद कुमार सिंह (स०अ०) पू०मा०विद्यालय उसका, पिपराइच, जनपद- गोरखपुर से-
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प्रथम नियुक्ति अक्टूबर 2009 में गोरखपुर जनपद के उरुवा ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय रामपुर सनाथ में हुआ थी। तत्समय इस विद्यालय में 72 छात्र संख्या थी और दो शिक्षामित्र बतौर शिक्षक थे। चार्ज दूसरे विद्यालय पर था।लगातार जनसंपर्क अभिभावक मिटिंग और शैक्षणिक सुधार के बाद छात्र संख्या- 152 हुई थी। तभी 2013 नवम्बर में प्रमोशन द्वारा कैम्पियरगंज के प्रा० वि० रिगौली प्रथम पर बतौर प्रधानाध्यापक हुआ वहाँ से जनवरी-2014 में 50 दिन के उपरांत ही स्थानांतरण पिपराइच ब्लॉक के पूर्व मा० वि० उसका पर बतौर सहायक अध्यापक हुआ।
जब पूू ०मा० विद्यालय उसका, पिपराइच, गोरखपुर बतौर सहायक अध्यापक पहुँचे तो उस समय विद्यालय पर 52 बच्चे नामांकित थे। परन्तु उपस्थिति 7, 9, अधिकतम 12 बच्चों की थी। विद्यालय में 4 कमरे थे परंतु किसी कमरे को कई साल से नहीं खोला गया, जरूरत नहीं थी बरामदे में बच्चे टाट पर बैठते थे न ही विद्यालय का सही नियमानुसार संचालन था। यहाँ 3 शिक्षक थे एक इंचार्ज और 2 महिला अध्यापिका।
एक ही कैम्पस में प्राइमरी जूनियर दोनों है।
जनवरी माह में आने के बाद सर्वप्रथम विद्यालय को अपने पूर्व विद्यालय के अनुभवों व उत्साह के आधार पर चलाने का प्रयास किया।
1-प्रथम कार्य के रूप में विद्यालय को ग्रामसभा के लोगों से जोड़ने के प्रयास किया और सप्ताह में एक बार गांव में व्यक्तिगत सम्पर्क और लोगों के विश्वास को कायम करना शुरू किया जो पहले नही होता था। जिसका कुछ परिणाम दिखा उपस्थिति % बढ़ी और जुलाई में नामांकन 63 हुआ।
2-साल में आने सभी उत्सवों को धूमधाम से अत्याधुनिक यंत्रो के माध्यम से व उत्सव के रूप में ग्रामसभा की भागीदारी को सुनिश्चित करते हुए करता रहा व सम्पर्क बगल के गांवों तक बढ़ाया गया, परिणाम अगले वर्ष 83 नामांकन हुआ।
3-पुनः नये सत्र में बच्चों के बैठने के लिए 10000 हजार रुपये अपने लगाकर फर्नीचर लाया। समय सारणी से पढ़ाई चालू करवाया, अभिवावक की मासिक बैठकों पर विशेष जोर दिया। इसमें उनकी सुने ,सम्मान दे अपनी सुनावे की तर्ज पर काम करना शुरू किया गया।
अनुपस्थित बच्चों के घर पर प्रतिदिन फोन से, दो या अधिक दिन गायब रहने पर अभिभावक से सम्पर्क किया।
बाल दिवस पर व्यक्तिगत खर्चे से अपने विद्यालय के चारों तरफ के विद्यालयों का दो दिवसीय इन्टरस्कूल गेम कराया।इसका परिणाम यह हुआ कि नये सत्र में नामांकन 93 हो गयी।
गांव के ही सहयोगी सज्जन से चंदा मांग कर् 27000 रुपए का भव्य गेट बनवाया गया।
4-पंचायती चुनाव में ग्राम प्रधान बदल गये, नये प्रधान ने विद्यालय के साथ कदम से कदम मिलाया और विद्यालय विकास का जो खाका प्रबन्ध समिति ने खिंचा, उसपर 100% कार्य किया। 3.50 ₹ लाख 14 वें वित्त का पैसा विद्यालय में लगाया गया। परिणाम विद्यालय में इस सत्र में अभी तक 107 की नामांकन संख्या हो गयी। जो विद्यालय का आज तक का सर्वाधिक नामांकन है। अभी 10 के आस पास संख्या आने की अनुमान है।
5- प्रारम्भ सिर्फ एक पीपल का बृक्ष था परन्तु तभी से बृक्षारोपण कार्य किया आज 50 पेड़ है।
पार्क व फूलों को तरजीह भी दी गयी है।
तो आइये जानते हैं भाई प्रमोद कुमार सिंह जी के अनुकरणीय एवं सराहनीय प्रयासों को:-
प्रमोद कुमार सिंह (स०अ०) पू०मा०विद्यालय उसका, पिपराइच, जनपद- गोरखपुर से-
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प्रथम नियुक्ति अक्टूबर 2009 में गोरखपुर जनपद के उरुवा ब्लॉक के प्राथमिक विद्यालय रामपुर सनाथ में हुआ थी। तत्समय इस विद्यालय में 72 छात्र संख्या थी और दो शिक्षामित्र बतौर शिक्षक थे। चार्ज दूसरे विद्यालय पर था।लगातार जनसंपर्क अभिभावक मिटिंग और शैक्षणिक सुधार के बाद छात्र संख्या- 152 हुई थी। तभी 2013 नवम्बर में प्रमोशन द्वारा कैम्पियरगंज के प्रा० वि० रिगौली प्रथम पर बतौर प्रधानाध्यापक हुआ वहाँ से जनवरी-2014 में 50 दिन के उपरांत ही स्थानांतरण पिपराइच ब्लॉक के पूर्व मा० वि० उसका पर बतौर सहायक अध्यापक हुआ।
जब पूू ०मा० विद्यालय उसका, पिपराइच, गोरखपुर बतौर सहायक अध्यापक पहुँचे तो उस समय विद्यालय पर 52 बच्चे नामांकित थे। परन्तु उपस्थिति 7, 9, अधिकतम 12 बच्चों की थी। विद्यालय में 4 कमरे थे परंतु किसी कमरे को कई साल से नहीं खोला गया, जरूरत नहीं थी बरामदे में बच्चे टाट पर बैठते थे न ही विद्यालय का सही नियमानुसार संचालन था। यहाँ 3 शिक्षक थे एक इंचार्ज और 2 महिला अध्यापिका।
एक ही कैम्पस में प्राइमरी जूनियर दोनों है।
जनवरी माह में आने के बाद सर्वप्रथम विद्यालय को अपने पूर्व विद्यालय के अनुभवों व उत्साह के आधार पर चलाने का प्रयास किया।
1-प्रथम कार्य के रूप में विद्यालय को ग्रामसभा के लोगों से जोड़ने के प्रयास किया और सप्ताह में एक बार गांव में व्यक्तिगत सम्पर्क और लोगों के विश्वास को कायम करना शुरू किया जो पहले नही होता था। जिसका कुछ परिणाम दिखा उपस्थिति % बढ़ी और जुलाई में नामांकन 63 हुआ।
2-साल में आने सभी उत्सवों को धूमधाम से अत्याधुनिक यंत्रो के माध्यम से व उत्सव के रूप में ग्रामसभा की भागीदारी को सुनिश्चित करते हुए करता रहा व सम्पर्क बगल के गांवों तक बढ़ाया गया, परिणाम अगले वर्ष 83 नामांकन हुआ।
3-पुनः नये सत्र में बच्चों के बैठने के लिए 10000 हजार रुपये अपने लगाकर फर्नीचर लाया। समय सारणी से पढ़ाई चालू करवाया, अभिवावक की मासिक बैठकों पर विशेष जोर दिया। इसमें उनकी सुने ,सम्मान दे अपनी सुनावे की तर्ज पर काम करना शुरू किया गया।
अनुपस्थित बच्चों के घर पर प्रतिदिन फोन से, दो या अधिक दिन गायब रहने पर अभिभावक से सम्पर्क किया।
बाल दिवस पर व्यक्तिगत खर्चे से अपने विद्यालय के चारों तरफ के विद्यालयों का दो दिवसीय इन्टरस्कूल गेम कराया।इसका परिणाम यह हुआ कि नये सत्र में नामांकन 93 हो गयी।
गांव के ही सहयोगी सज्जन से चंदा मांग कर् 27000 रुपए का भव्य गेट बनवाया गया।
4-पंचायती चुनाव में ग्राम प्रधान बदल गये, नये प्रधान ने विद्यालय के साथ कदम से कदम मिलाया और विद्यालय विकास का जो खाका प्रबन्ध समिति ने खिंचा, उसपर 100% कार्य किया। 3.50 ₹ लाख 14 वें वित्त का पैसा विद्यालय में लगाया गया। परिणाम विद्यालय में इस सत्र में अभी तक 107 की नामांकन संख्या हो गयी। जो विद्यालय का आज तक का सर्वाधिक नामांकन है। अभी 10 के आस पास संख्या आने की अनुमान है।
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