१००- राजकुमार शर्मा, पू०मा०वि० चित्रवार, चित्रकूट
★ संघर्ष की सफल कहानी ★
मित्रो आज हम मिशन शिक्षण संवाद के माध्यम से आपका परिचय भगवान राम की कर्मभूमि, महात्मा तुलसीदास जी जन्मभूमि तथा साक्षात कामतानाथ जी की देवभूमि जनपद- चित्रकूट से बेसिक शिक्षा के अनमोल रत्न शिक्षक भाई राजकुमार शर्मा जी से करा रहे हैं। जिन्होंने निराशा का पर्याय बन चुके विद्यालय और अभिभावकों के बीच बेसिक शिक्षा के विद्यालय को आशा में बदल कर अभिभावकों के लिए विश्वास का प्रतीक विद्यालय बना दिया।
आज जहाँ बेसिक शिक्षा की पोस्टिंग नीति ने बेसिक शिक्षा और उसके शिक्षकों ऐसे चक्रव्यूह में उलझा रखा है कि पूर्व का निवासी शिक्षक पश्चिम में और पश्चिम का पूर्व में कई किलोमीटर की अव्यवस्थित यात्रा करने के बाद स्कूल पहुँचता है। जिससे वह अपने जीवन का श्रेष्ठ विद्यालय को न देकर, व्यवस्था और यात्रा में लगा देता है या जल्दबाजी की यात्रा में दुर्घटना शिकार होकर दुनियाँ से ही विदा हो जाता है। इस नीति ने शिक्षक ही नहीं तरल सोना कहे जाने वाले पेट्रोलियम और जीवन की संजीवनी कही जाने वाली शिक्षा, दोनों को भी बुरी तरह प्रभावित कर रखा है। जबकि पोस्टिंग की इस जटिल नीति को काफी हद तक म्युचुअल और काउंसिलिंग विधि से सरल, सहायक और उपयोगी बना कर शिक्षा और शिक्षक दोनों का उत्थान किया जा सकता है।
लेकिन धन्य हैं वह राजकुमार जी जैसे अनमोल रत्न जो विद्यालय पहुँचने के लिए घर से पहले टैम्पो, फिर बस और अन्त में साइकिल का सहारा लेते हुए 65 किमी का सफर करके भी विद्यालय और शिक्षक धर्म को कलंकित नहीं होने दिया। अपने अपनी सकारात्मक सोच से बिना रुके, बिना थके एक ऐसे विद्यालय को अव्यवस्थाओं के समुद्र में गोता लगाने से निकाल कर, विद्यालय की दशा और दिसा बदलते हुए शिखर की ओर अग्रसर कर दिखाया। जो हम जैसे हजारों शिक्षकों के लिए अनुकरणीय है।
तो आइये जानते है कि कैसे और किस हालत के विद्यालय को आपने गति प्रदान की:--
महोदय मैंने ५ अगस्त-२०१५ को इस विद्यालय का चार्ज ग्रहण किया था। विद्यालय की दशा और दिशा दोनों ही बेहद दयनीय थी आलम यह था कि शौचालय ध्वस्त, बच्चे सिफर पुताई नहीं, हैण्डपम्प खराब, अलमारियों में दीमक आदि। विद्यालय की गतिविधियों में चारों तरफ निराशा ही निराशा नजर आ रही थी।
इस निराशा के बीच ही गाँव की एक विशिष्ट विशेषता भी थी जो कुछ दिन बीतते ही गांव के लोग आये और अपनी वीरता की कहानी हमें सुनाई और कहा कि इस गांव जितने अध्यापक आये सब मार खा के गये हैं। होश में रहना।
लेकिन भय और निराशा के बीच भी हमने अपनी सकारात्मक सोच कीे शक्ति और अपने कर्म पर भरोसा रखा। काम शुरू किया कुछ पेटिंग, म्यूजिक का ज्ञान कभी- कभी कविता भी लिख लेता हूँ इन्ही को हमने जरिया बनाने का निश्चय किया। साथ ही अभिभावकों से मिलने -मिलाने के साथ अपनी कहना उनकी सुनना आदि माध्यम से सम्पर्क अभियान चलता रहा, जिससे ३६ के सापेक्ष २३-२४ बच्चे स्कूल आने लगे। अब अपने कर्म की सफल गति को देखते हुए हिम्मत और हौसला बढ़ने लगा। जिससे एम.डी.एम १० वर्षों तक प्रधानों के कब्जे में रहा दिसम्बर-१५ में मुक्त हो गया। अब अच्छा भोजन बनवाना शुरू किया छात्र की उपस्थिति और अभिभावकों का विश्वास बढने लगा। सुधारात्मक गति को आगे बढ़ाते हुए स्वयंसेवा से ५००० खर्च करके सभी बच्चों के लिए थाली, गिलास, बाल्टी आदि बर्तन खरीदे। गाँव में यह पहली बार होता देख चरचा होने लगी अपना पैसा क्यों लगाते हो?
इन सब सहयोगात्मक कार्यों से बच्चों को स्कूल आना अच्छा लगने लगा। इसके बाद २६ जनवरी के कार्यक्रम की रूपरेखा बनी, सभी अभिभावकों को विद्यालय की ओर से पत्र लिखकर आमन्त्रित किया। खासकर माताओं को विशेष आग्रह करके ४ घंटे सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुतियां पंजाबी, राजस्थानी लोकनृत्य, राई नृत्य की धूम मच गयी।बच्चों को पुरस्कार भी खूब मिला। गाँव में नयी पहल देखकर विद्यालय चर्चा का विषय बनने लगा। इसके साथ ही 26 नवम्बर-16 को उ प्र प्राथमिक शिक्षक संघ चित्रकूट के पदाधिकारियों की उपस्थिति में शैक्षिक उन्नयन गोष्ठी एवं शिक्षक सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें हमारे विद्यालय द्वारा टी एल एम प्रदर्शनी लगायी गयी। जिसमें श्रेष्ठ अध्यापक का पुरस्कार भी मिला तथा बुन्देलखण्ड़ का लोक नृत्य राई ब्लाक रैली में, वादन, गायन में भी सराहनीय प्रस्तुती रही। जबकि घर से विद्यालय ६० किमी दूर है। प्रात:६-३० टैम्पो यात्रा ७:१५ बस यात्रा ८-२५ साइकिल यात्रा ३किमी ८-४० स्कूल पर पहुँचकर विद्यालय की सेवा शुरू हो जाती है। यहाँ तक ही नहीं वर्षा के दिनों में नदी और नालों के पानी के बीच से भी यात्रा शुरू रहती है।
लेकिन सन्तुष्टि नहीं!
*अभी तो और भी इम्तहां बाकी हैं।*
*ए जमीं और आसमां बाकी हैं।।*
*मैं तन्हां नहीं हूँ अशिक्षा समर में।*
*मेरे साथ लड़ने को सारा कारवां बाकी है।।*
*ए जमीं और आसमां बाकी हैं।।*
*मैं तन्हां नहीं हूँ अशिक्षा समर में।*
*मेरे साथ लड़ने को सारा कारवां बाकी है।।*
राजकुमार शर्मा ( प्र० अ०)
प्रा० वि० चित्रावर, चित्रकूट
प्रा० वि० चित्रावर, चित्रकूट
मित्रो आपको राजकुमार जी के संघर्ष की कहानी जानकर कैसा लगा? जिन्होंने अपनी सकारात्मक सोच से हमें गौरान्वित होने का अवसर प्रदान किया। आप जैसे अनमोल रत्नों की शक्ति से ही बेसिक शिक्षा की विषम परिस्थितियों में हम सब शिक्षक गर्व से सिर ऊँचा रख पीते हैं। मिशन शिक्षण संवाद की ओर से राजकुमार शर्मा जी एवं उनके सहयोगी विद्यालय परिवार को उज्जवल भविष्य की कामना के साथ बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
मित्रो आप भी यदि बेसिक शिक्षा विभाग के सम्मानित शिक्षक हैं या शिक्षा को मनुष्य जीवन के लिए महत्वपूर्ण और अपना कर्तव्य मानते है तो इस मिशन संवाद के माध्यम से शिक्षा एवं शिक्षक के हित और सम्मान की रक्षा के लिए हाथ से हाथ मिला कर अभियान को सफल बनाने के लिए इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने में सहयोगी बनें और शिक्षक धर्म का पालन करें। हमें विश्वास है कि अगर आप लोग हाथ से हाथ मिलाकर संगठित रूप से आगे बढ़े तो निश्चित ही बेसिक शिक्षा से नकारात्मकता की अंधेरी रात का अन्त होकर रोशनी की नयी किरण के साथ नया सबेरा अवश्य आयेगा। इसलिए--
आओ हम सब हाथ मिलायें।
बेसिक शिक्षा का मान बढ़ायें।।
बेसिक शिक्षा का मान बढ़ायें।।
नोटः- यदि आप या आपके आसपास कोई बेसिक शिक्षा का शिक्षक अच्छे कार्य कर शिक्षा एवं शिक्षक को सम्मानित स्थान दिलाने में सहयोग कर रहा है तो बिना किसी संकोच के अपने विद्यालय की उपलब्धियों और गतिविधियों को हम तक पहुँचाने में सहयोग करें। आपकी ये उपलब्धियाँ और गतिविधियाँ हजारों शिक्षकों के लिए नयी ऊर्जा और प्रेरणा का काम करेंगी। इसलिए बेसिक शिक्षा को सम्मानित स्थान दिलाने के लिए हम सब मिशन शिक्षण संवाद के माध्यम से जुड़कर एक दूसरे से सीखें और सिखायें। बेसिक शिक्षा की नकारात्मकता को दूर भगायें।
उपलब्धियों का विवरण और फोटो भेजने का WhatsApp no- 9458278429 है।
साभार: शिक्षण संवाद एवं गतिविधियाँ
विमल कुमार
कानपुर देहात
12/12/2016
विमल कुमार
कानपुर देहात
12/12/2016
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