१३०- अशोक कुमार यादव, प्रा० वि० जेठुपुर, औराई, भदोही

मित्रो आज हम आपका परिचय मिशन शिक्षण संवाद के माध्यम से जनपद-भदोही से प्रा० वि० जेठूपुर के नव नियुक्त अनमोल रत्न शिक्षक भाई अशोक कुमार यादव जी से करा रहे हैं जिन्होंने जनपद- श्रावस्ती के प्रा० वि० मध्यनगर मनोहरपुर पराठाँ विकास खण्ड-इकौना में रहते हुए अपनी सकारात्मक सोच से विद्यालय को श्रेष्ठ श्रेणी में विकसित कराते हुए सम्मानित कराया।

तो आइये जानते है भाई अशोक जी की सफल विद्यालय विकास यात्रा के कुछ अंश:--

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सर जब मैं प्रमोशन हो करके दिसंबर-2014 में मध्य नगर मनोहरपुर पहुंँचा तो वहाँं पर उपस्थिति बहुत कम थी कैंपस बहुत ही गंदा था गाय भैंस उसमें चलती थी गेट नहीं बंद होता था कैंपस के चारों तरफ झाड़ी फैली थी।
मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं किस स्कूल में आ गया और कैसे यहाँ पर रहूंगा, लेकिन यह एक हफ्ता किसी तरह से बिताया, चिंतन- मनन किया, निष्कर्ष पर पहुँचा कि जब काम करना है तो शुरू करें। बस फिर प्रण किया कि इस स्कूल को मैं बदल कर दिखाऊंगा सबसे पहले मैं स्कूल कैंपस को साफ-सुथरा कराया इसके बाद कैंपस में चारों तरफ खुद अपने हाथों से क्यारी बनाई सैकड़ों किस्म के फूल नीम गोल्ड मोहर चितवन कदंब आम अशोक का पेड़ एरो केरिया सफेदा का लिपटिस आदी लगभग 40 पौधे लगाए। धीरे-धीरे गाँंव में स्कूल की छवि बदलने लगी गाँंव वालों को एहसास हो गया कि स्कूल में कोई अच्छा अध्यापक आया है वह अपने बच्चों को खुद भेजना चालू कर दिए जो बच्चे नहीं आ रहे थे मैं हफ्ते में एक दिन गाँंव में भ्रमण पर जाता था और सभी माता-पिता को समझा कर बच्चे को स्कूल लाता था उसी बीच 26 जनवरी आ गई लगभग में आए एक महीना हुआ था हमसे जितना हो सका मैंने कुछ तैयारी करके बच्चों का कार्यक्रम कराया वह गांव वालों को बहुत अच्छा लगा। धीरे-धीरे फूल पौधों से स्कूल कैंपस पार्क जैसा हो गया। गाँंव में मेरा स्कूल एक अच्छी छवि पहचान बनाने लगा।
कोई भी त्यौहार जैसे होली, दीपावली, रक्षाबंधन, बाल दिवस, 26 जनवरी, 15 अगस्त कोई भी त्यौहार मैं बच्चों के साथ स्कूल में ही धूमधाम से मनाता था सभी त्योहारों में गांव वाले भी उत्सुकतापूर्वक भाग लेते थे। इस तरह से सबकी नजरों में स्कूल की पहचान अच्छी होने लगी इसके साथ-साथ मैं पढ़ाई पर विशेष ध्यान देता था। पढ़ाई के साथ-साथ संस्कार का भी ध्यान देता था। बच्चों का कैसे उठना-बैठना गाँंव में कैसे रहना है। किसके साथ कैसे व्यवहार करना है। इस पर प्रतिदिन सुबह और शाम को बच्चों को आधा घंटा इसके बारे में बताता था। बच्चों के अंदर जल्दी ही परिवर्तन होने लगा गाँंव वालों का विश्वास बढ़ गया। बच्चे खुद-ब-खुद बढ़ते गए। इसके साथ-साथ मैं प्रतिदिन सुबह pt और साफ सफाई के बारे में जनरल नॉलेज के बारे में बताता था और शाम को एक घंटा प्रतिदिन खेल के माध्यम से बच्चों का मनोरंजन करता था। सभी बच्चों का फोन नंबर हमारे स्कूल में रहता था जो बच्चे नहीं आते थे उनका मैं पता करता था कि क्यों नहीं आए और जिन बच्चों को नहीं आना रहता था वह मुझे फोन द्वारा सूचित भी करते थे या तो उनके अभिभावक स्कूल में खुद छुट्टी मांगते थे। अनुशासन का हमारे स्कूल में विशेष महत्व दिया जाता था। हर शनिवार को बाल सभा कराई जाती थी प्रतिदिन आने वाले बच्चे अधिक साफ सफाई वाले बच्चे अधिक साफ सुथरे बच्चे को बीच-बीच में पुरस्कृत किया जाता था।
इसी बीच खेल प्रतियोगिता शुरु होने वाली थी उसकी तैयारी मैंने प्रारंभ किया ब्लॉक स्तर पर प्रतियोगिता में प्रतिभाग कराया ब्लॉक पर सभी खेलों में हमारे स्कूल के बच्चे प्रथम आए और पुरस्कार लेकर आए। गाँंव वाले बहुत खुश हुए इसके बाद जिला स्तर पर प्रतिभाग कर आया वहाँं पर भी सभी खेलों में प्रथम स्थान प्राप्त किया। जिससे गांव वालों में और उत्साह बड़ा इसके बाद मंडल स्तर पर प्रतिभाग कराया। वहाँं पर भी सभी खेलों में प्रथम स्थान प्राप्त किया। जिसके बाद खो-खो एवं कबड्डी में राज्य स्तर तक पहुंचे लेकिन वहाँं पर सफलता नहीं मिली जिला और मंडल स्तर पर पहुंचने से ही हमारे स्कूल हमारे बच्चों हमारा पूरे गांव का नाम जिले स्तर पर फैल गया। सभी पेपर में स्कूल के बच्चों का स्कूल का नाम गांव का नाम आने लगा गांव वालों का विश्वास बढ़ता गया। एक दिन खंड शिक्षा अधिकारी महोदय निरीक्षण पर आए उन्होंने कक्षा-2 के बच्चों से उनका नाम जानना चाहा बच्चे ने अपना परिचय अंग्रेजी में दिया इस पर खंड शिक्षा अधिकारी बहुत खुश हुए। उसी बच्चे से पहाड़ा जानना चाहा तो उस बच्चे ने 22 का पहाड़ा सुनाया कक्षा पांच के बच्चे ने 27 का पहाड़ा सुनाया स्कूल के सभी बच्चे अपना नाम पिता का नाम पता किस कक्षा में पढ़ते हैं, पूरा इंट्रोडक्शन अंग्रेजी में दे लेते थे मेरे स्कूल की चर्चा धीरे-धीरे पूरे जिले में फैल गई कि जो स्कूल सबसे खराब स्कूल था वह जिले में नंबर 1 का स्कूल हो गया है इस पर खंड शिक्षा अधिकारी भी बीच-बीच में हौसला अफजाई करते रहते थे कोई भी मीटिंग होती थी उस मीटिंग में मेरा उदाहरण दिया जाने लगा लेकिन इस बीच मेरे जेब से कितना पैसा खर्च हो गया मैंने कभी उसकी गिनती नहीं की क्योंकि ब्लॉक स्तर जिला स्तर मंडल स्तर तक बच्चों को ले जाने का और उनके ड्रेस का सारा खर्च मैं ही बहन किया था मंडल तक पहुंचने के बाद राज्य स्तर पर सारा खर्चा विभाग द्वारा दिया गया था। अनुशासन एवं संस्कार व्यवहार का विशेष ध्यान दिया जाता था क्लासरूम को अच्छी तरह से सजाया गया था। इसी बीच मेरे प्रयास को देखते हुए मेरे स्कूल में सोलर पैनल डीसी फैन आरो प्लांट लगा दिया गया।

अगस्त में मुझे पता चला कि आपका विद्यालय विद्यालय पुरस्कार योजना में चुन लिया गया है मुझे बहुत ही खुशी अनुभूति हुई और पूरे जिले में मेरे स्कूल का मेरा नाम होने लगा गाँंव वाले बहुत खुश हुए लेकिन इसी बीच मेरा ट्रांसफर हो गया सभी बच्चे और गांव वाले मेरी विदाई होते समय बहुत ही रोए थे।
अशोक कुमार यादव
प्रा० वि० जेठूपुर
औराई, भदोही

मित्रो आपने देखा कि किस प्रकार अशोक जी ने बिना रूकें, बिना थके, हंसते हुए अपने विद्यालय की विकास यात्रा को पूरा किया। हम मिशन शिक्षण संवाद की ओर आशा करते हैं कि शीघ्र ही आपके नवीन विद्यालय के विकास की यात्रा का वर्णन सुनने और पढ़ने को मिलेगा। जिससे हम जैसे हजारों शिक्षकों को प्रेरणा के साथ गौरान्वित होने का अवसर प्राप्त होगा।

मिशन शिक्षण संवाद परिवार की ओर से भाई अशोक जी एवं उनके विद्यालय के सहयोगी परिवार को बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!

👉 मित्रों आप भी यदि बेसिक शिक्षा विभाग के सम्मानित शिक्षक हैं या शिक्षा को मनुष्य जीवन के लिए महत्वपूर्ण और अपना कर्तव्य मानते है तो इस मिशन संवाद के माध्यम से शिक्षा एवं शिक्षक के हित और सम्मान की रक्षा के लिए हाथ से हाथ मिला कर अभियान को सफल बनाने के लिए इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने में सहयोगी बनें और शिक्षक धर्म का पालन करें। हमें विश्वास है कि अगर आप लोग हाथ से हाथ मिलाकर संगठित रूप से आगे बढ़े तो निश्चित ही बेसिक शिक्षा से नकारात्मकता की अंधेरी रात का अन्त होकर रोशनी की नयी किरण के साथ नया सवेरा अवश्य आयेगा। इसलिए--

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साभार: शिक्षण संवाद एवं गतिविधियाँ_
 
*विमल कुमार*
_कानपुर देहात_
22/02/2017

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