विद्यालय कहाँ हैं?

बड़े अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि हमारे यहाँ विद्यालय लगभग ख़त्म हो चुके हैं।
चौंकिए मत, विद्यालय उसी को कह सकते हैं जहाँ विद्या मिले और विद्या उसी को कह सकते हैं जिससे चरित्र की उपलब्धि हो।
अब भी क्या हम कह सकते हैं कि हमारे विद्यालय 'विद्यालय' हैं?

कटु सच्चाई यह है कि हमारे विद्यालय 'सूचनालय' बन चुके हैं, जहाँ आर्थिक सम्पन्नता का बेस (कैरिअर) तैयार करना ही पहला और आखिरी उद्देश्य रहता है; छात्र का भी, अभिभावक का भी और शिक्षा संस्थान का भी।

एक और बेहद खतरनाक सत्य यह भी है कि इस कैरिअर निर्माण की खातिर चरित्र का निर्माण तो दूर, उल्टे उसको रौंदने से भी आज गुरेज़ नहीं किया जाता। छुपकर नहीं, खुलकर नक़ल; इक्का-दुक्का नहीं, सामूहिक नक़ल; छात्रों द्वारा नहीं, ठेकों पर सेंटर द्वारा आयोजित नक़ल; ईमानदार निरीक्षकों का उत्पीड़न; ये सारी सच्चाइयाँ किससे छुपी हैं?

येन-केन प्रकारेण अच्छे नंबर, अच्छा ग्रेड, तिकड़मी दिमाग; यही है तथाकथित विद्यालयों की उत्पादकता और जहाँ वास्तविक प्रतिभा है भी, उसमें भी (अपवाद छोड़कर) मानवीय मूल्यों की बजाय 'भौतिकवादी सोच की प्रधानता', देने से ज्यादा लेने की जुगाड़, कर्तव्य से अधिक अधिकारों का शोर, व्यवहारिकता और होशियारी के नाम पर भ्रष्ट आचरण।
ये सब हमारे तथाकथित विद्यालयों से ही निकलते हैं न?
देश की सभी समस्यायों की जड़ में इसी चरित्र का अभाव है न?

अब फिर वही प्रश्न :-

'विद्या के मंदिर' कहाँ हैं?
इन मंदिरों के देवता (चरित्र) कहाँ निर्वासित हैं?
इन मंदिरों के पुजारी (अध्यापक) खुद कितने चरित्रवान हैं?
इन मंदिरों के भक्त (विद्यार्थी) भ्रमित होकर किन नकली देवताओं को पूजने लगे हैं?

हम चर्चाएँ करते हैं कि पत्तों की धूल कैसे साफ़ हो? लेकिन चर्चा का मुख्य बिंदु होना चाहिए कि चरित्र रूपी जड़ कैसे मजबूत हो।

शायद ही कोई असहमत हो कि किसी भी देश का गौरव, स्वर्णिम भविष्य और खुशहाली उसके नागरिकों की बुद्धिमत्ता से नहीं, उच्च चरित्र से तय होता है।

सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन एक कटु सच्चाई यह भी है कि आज निरक्षरता से भी बड़ी समस्या है 'चरित्रहीन विद्वता' और इसका स्पष्ट प्रमाण है भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी लगभग हर मशीनरी, जिसमें सब उच्च-शिक्षित लोग ही बैठे हैं।

विद्यालय किसी भी देश का वर्तमान तय नहीं करते, लेकिन उसके भविष्य की नींव तैयार करते हैं और वर्तमान पर ही फोकस करने वाले लोग इस बेहद महत्त्वपूर्ण विषय की अनदेखी कर अपनी अदूरदर्शिता का परिचय दे रहे हैं और देश के अंधकारमय भविष्य की पटकथा लिख रहे हैं।
लेखक 
प्रशान्त अग्रवाल
सहायक अध्यापक
प्राथमिक विद्यालय डहिया
विकास क्षेत्र फतेहगंज पश्चिमी
ज़िला बरेली (उ.प्र.)

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