फख्र है हम किताब पढ़े हैं

फख्र है हम किताब पढ़े हैं,
बनती नहीं दो रोटियां हमसे,
चलते नहीं है फरसा,
न मिले नौकरी,
तो भरपेट रोटी के लिए भी तरसा।

भूलते हो संस्कार,
बड़ों  से करते हो दुर्व्यवहार,
विकलांग की तरह करते हो व्यवहार,
अनगढ़ व्यक्तित्व, बेढंगे चाल
बेमतलब का करते हो बवाल।

धिक्कार है तुम्हारी शिक्षा को!!
हम व्यक्ति नहीं विकलांग बने है,
और फख्र से कहते हैं किताब पढ़े हैं।
फख्र से कहते...........

कोई मजदूर का बेटा,कोई बाई की बेटी,
किसी ने एक जून खाया,किसी ने लुगरी लपेटी,
पढ़ने को पसीने की कमाई से दूर भेजा,
बेटा बन गया नवाब बेटी जन्नत की हूर,
व्यक्तिव तो नही बना, माँ बाप झूठे अहंकार मे चूर!!
चलती नही कलम उनसे,
तो काम कहाँ से होगा??
मेहनत करते नहीं,
रात को पढ़ते नहीं उनका तकियाकलाम जो होना होगा वो होगा!!!!

यही अनगढ़ व्यक्तित्व हम आज गढ़े हैं,
और फख्र से कहते हैं हम किताब...........

रोमांस भी तो तभी होता हैं,
जब पेट भरा होता है,
माँ बाप के पैसों से पिज्जा और फ़िल्म,कल की गर्लफ्रैंड आज की दुल्हन बनी,
दो रोटियों के लिए सास बहू में खूब ठनी।
बहू ने कहा माँ जी  हम किताब पढ़े हैं,
मेरा यह खूबसूरत व्यक्तित्व माँ बाप गढ़े हैं,
हम फख्र से कहते हैं किताब...........

हर माँ बाप की एक ही वेदना
अरे!! जला दो ऐसी किताब,
ऐसी शिक्षा जो तुम्हे बेढंगा बनाती है,जीवन का ऊंच नीच न सिखाती हो!
किताब नहीं क्या खाक पढ़े हो!!!!
तुम शर्म से कहो कि किताब पढ़े हो!!तुम शर्म से कहो.........

बच्चों को औपचारिक अनौपचारिक दोनों ही शिक्षा दें वरना रिश्ते, 
परिवार और समाज का विघटन दोनों ही तय है।

रचनाकार:-
बिंदू राय,
प्राथमिक विद्यालय सुरतापुर,
मोहम्मदाबाद  गाजीपुर।

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