७१- संतोष प्रजापति, प्रा० वि० मोहम्मदपुर काँध, धर्मापुर, जौनपुर
मित्रो आज हम आपका परिचय मिशन शिक्षण संवाद के माध्यम से जनपद- जौनपुर के बेसिक शिक्षा के अनमोल रत्न युवा उत्साह एवं मानवीय पहल के प्रतीक शिक्षक भाई संतोष प्रजापति जी से करा रहे हैं। जिन्होंने मानवता की वेदनापूर्ण सत्यकथा से परिचित कराते हुए मानवीय पहल का यह लेख हम सबको सकारात्मक सोच के लिए शक्ति प्रदान करता हैं।
★मानवीय पहल के प्रतीक संतोष जी★
"लक्ष्य ना ओझल होने पाए कदम मिलाकर चल,
मंजिल तेरी मिल जायेगी आज नहीं तो कल"
.
साथियों !
शहर की आधुनिक,साधनसम्पन्न और व्यस्त जिंदगी से कहीं दूर हमारा ग्रामीण परिवेश आज भी अभाव,आपदाओं और कठिन दिनचर्या से जूझ रहा है,,,परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में आने वाले ग्रामीण परिवेश के नन्हे-मुन्नों को आप नित्य प्रति अभावों और आवश्यकताओं से जूझते देख सकते हैं,,,शहरी कॉन्वेंट स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहा सम्पन्न वर्ग का एक कुलदीपक जितने पैसों की महीने भर में चॉकलेट, आइसक्रीम और अन्य चीजें खरीदता है उसके दसवें भाग के बराबर पैसे भी हमारे इन ग्रामीण परिवेश के नौनिहालों को कॉपी/पेन्सिल तक खरीदने को नहीं मिल पाते,,,, चॉकलेट और आइसक्रीम जैसी चीजें तो 'शौक' की विषयवस्तु है किंतु हमारे ये नौनिहाल अपनी 'जरूरत' तक नहीं पूरी कर पाते क्योंकि इनके अभिभावक ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर/किसान और छोटे कर्मचारी हैं,,,मैं इसे भाग्य की विषम विडम्बना ही कहूँगा कि कई गरीब बच्चों के परिवार का एक महीने का बजट हमारे एक दिन के वेतन के बराबर भी शायद ना हो पाता होगा,,,विगत कुछ समय में प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था दुरुस्त करने की मुहिम में कई अग्रज शिक्षक बन्धुओं को प्राणपण से जुटे देखा, जिन्होंने अपने कर्म, समर्पण और निष्ठा से वास्तव में तस्वीर बदलने का कठिन लक्ष्य हासिल किया,,, ऐसे ही कुछ शिक्षकों के सान्निध्य और मार्गदर्शन से आज परिवर्तन की झलकियाँ अक्सर दीख पड़ती हैं किंतु लक्ष्य अभी भी कोसों दूर है,,,निःसन्देह हम अचानक पूरी व्यवस्था को नहीं बदल सकते किन्तु 'एक छोटी सी शुरुआत' तो कर ही सकते हैं,,,अवकाश के दिन अचानक किसी काम से गाँव में निकलना पड़ा, देखा की मेरे विद्यालय के कुछ बच्चे हाड़ कँपा देने वाली सर्दी में भी फ़टे चीथड़ों और कई छेदों से युक्त ऊनी कपड़ों में ठिठुरते हुए दैनिक कार्यों में व्यस्त हैं,,,मैंने उनके अभिभावकों से सम्पर्क करके शीत से बचाव की बात कही और बीमार पड़ने के प्रति चेतावनी भी दी,,, अभिभावकों ने जो प्रतिउत्तर दिया वह सुनकर मेरा शिक्षक हृदय गर्व, निराशा, विषाद , दुःख और हर्ष से एक साथ भर उठा,,, अभी लगभग एक पखवाड़े पहले मैंने विद्यालय के बच्चों को स्वैटर वितरण किया था और हिदायत थी कि स्कूल की ड्रेस, टाई-बेल्ट और स्वैटर घर पर कोई ना पहने ताकि स्कूल ड्रेस सिर्फ स्कूल के लिए लागू हो,,, अभिभावकों ने मुझसे कहा कि -"सर जी ! ये बच्चे स्कूल वाला स्वैटर पहनते ही नहीं चाहे जितनी सर्दी पड़े, बार-बार यही कहते हैं कि सर जी ने मना किया है स्कूल वाली ड्रेस घर पहनने को",,,,, वाणीविहीन हो मैं उलटे पाँव लौटा और सोच में पड़ गया कि अभाव और आवश्यकता से जूझते इन ग्रामीण परिवेश के बच्चों में जब अभी से इतनी सहनशीलता और अनुशासन है तो निश्चय ही ये आगे चलकर अपने जीवन में कुछ कर दिखाएँगे,,, इनके लिए कुछ जरुरी साधन जुटाने भी जरूरी थे अतः मैंने एक मुहिम शुरू की,,,आस-पास के सम्पन्न वर्ग के घरों से कपड़े जुटाने शुरू किये, सुबह उठकर ही अपना बड़ा वाला झोला उठाये दो/तीन दिन विद्यालय समय के बाद घूमा और कुछ कपड़े इकट्ठे किये जिन्हें लाकर अगले दिन विद्यालय के जरूरतमंद बच्चों में बाँट दिया,,,हालाँकि ये कोशिश अभाव में जी रहे इन नौनिहालों के लिये बहुत ही छोटी है लेकिन आत्मसंतोष इस बात का है कि छोटी सी ही सही कोशिश शुरू तो हुई,,,इस मुहिम का सार्थक परिणाम मुझे तुरन्त देखने को मिलने लगा जब आस-पास के कुछ मध्यम वर्ग के किसानों ने बच्चों के मध्यान्ह भोजन हेतु सब्जियाँ लाकर विद्यालय में भेंट करनी शुरू कर दीं,,, कुछ कपड़े भी स्वेच्छा से लाकर लोग देने लगे हैं और यह आश्वासन भी मिलने लगा कि कोई 'अन्य जरूरत' भी हो तो वे सहर्ष तैयार हैं,,,विद्यालय में नित कोई ना कोई सब्जी, फल, कपड़े लेकर आने का सिलसिला शुरू हुआ है जिससे एक तरफ मेरा हौसला बढ़ा और दूसरी तरफ सामुदायिक सहयोग की भावना को सफल होते देख विद्यालय परिवार भी खुश है,,,ये घटनाएँ मेरे जीवन की यादगार घटनाओं में से एक बन चुकी है जिसे शायद आजीवन विस्मृत कर पाना असंभव होगा,,, वास्तव में हमारा सिस्टम भले ही कुछ कमजोर हो, ग्रामीण परिवेश में अभाव और विपन्नता हो लेकिन ग्रामीण परिवेश के लोगों की सहृदयता, मानवता और सहयोग की भावना आज भी इतनी प्रबल है कि आपके किसी भी सार्थक और हितकारी पहल को सफल बना ही देती है,,,फिलहाल इस मुहिम को आगे बढ़ाते हुए पुनः ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ की नौनिहालों के लिए कुछ कर गुजरने का निमित्त मुझे बनाया और यह सुअवसर प्रदान किया,,
धन्यवाद,
मंजिल तेरी मिल जायेगी आज नहीं तो कल"
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साथियों !
शहर की आधुनिक,साधनसम्पन्न और व्यस्त जिंदगी से कहीं दूर हमारा ग्रामीण परिवेश आज भी अभाव,आपदाओं और कठिन दिनचर्या से जूझ रहा है,,,परिषदीय प्राथमिक विद्यालयों में आने वाले ग्रामीण परिवेश के नन्हे-मुन्नों को आप नित्य प्रति अभावों और आवश्यकताओं से जूझते देख सकते हैं,,,शहरी कॉन्वेंट स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहा सम्पन्न वर्ग का एक कुलदीपक जितने पैसों की महीने भर में चॉकलेट, आइसक्रीम और अन्य चीजें खरीदता है उसके दसवें भाग के बराबर पैसे भी हमारे इन ग्रामीण परिवेश के नौनिहालों को कॉपी/पेन्सिल तक खरीदने को नहीं मिल पाते,,,, चॉकलेट और आइसक्रीम जैसी चीजें तो 'शौक' की विषयवस्तु है किंतु हमारे ये नौनिहाल अपनी 'जरूरत' तक नहीं पूरी कर पाते क्योंकि इनके अभिभावक ज्यादातर दिहाड़ी मजदूर/किसान और छोटे कर्मचारी हैं,,,मैं इसे भाग्य की विषम विडम्बना ही कहूँगा कि कई गरीब बच्चों के परिवार का एक महीने का बजट हमारे एक दिन के वेतन के बराबर भी शायद ना हो पाता होगा,,,विगत कुछ समय में प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था दुरुस्त करने की मुहिम में कई अग्रज शिक्षक बन्धुओं को प्राणपण से जुटे देखा, जिन्होंने अपने कर्म, समर्पण और निष्ठा से वास्तव में तस्वीर बदलने का कठिन लक्ष्य हासिल किया,,, ऐसे ही कुछ शिक्षकों के सान्निध्य और मार्गदर्शन से आज परिवर्तन की झलकियाँ अक्सर दीख पड़ती हैं किंतु लक्ष्य अभी भी कोसों दूर है,,,निःसन्देह हम अचानक पूरी व्यवस्था को नहीं बदल सकते किन्तु 'एक छोटी सी शुरुआत' तो कर ही सकते हैं,,,अवकाश के दिन अचानक किसी काम से गाँव में निकलना पड़ा, देखा की मेरे विद्यालय के कुछ बच्चे हाड़ कँपा देने वाली सर्दी में भी फ़टे चीथड़ों और कई छेदों से युक्त ऊनी कपड़ों में ठिठुरते हुए दैनिक कार्यों में व्यस्त हैं,,,मैंने उनके अभिभावकों से सम्पर्क करके शीत से बचाव की बात कही और बीमार पड़ने के प्रति चेतावनी भी दी,,, अभिभावकों ने जो प्रतिउत्तर दिया वह सुनकर मेरा शिक्षक हृदय गर्व, निराशा, विषाद , दुःख और हर्ष से एक साथ भर उठा,,, अभी लगभग एक पखवाड़े पहले मैंने विद्यालय के बच्चों को स्वैटर वितरण किया था और हिदायत थी कि स्कूल की ड्रेस, टाई-बेल्ट और स्वैटर घर पर कोई ना पहने ताकि स्कूल ड्रेस सिर्फ स्कूल के लिए लागू हो,,, अभिभावकों ने मुझसे कहा कि -"सर जी ! ये बच्चे स्कूल वाला स्वैटर पहनते ही नहीं चाहे जितनी सर्दी पड़े, बार-बार यही कहते हैं कि सर जी ने मना किया है स्कूल वाली ड्रेस घर पहनने को",,,,, वाणीविहीन हो मैं उलटे पाँव लौटा और सोच में पड़ गया कि अभाव और आवश्यकता से जूझते इन ग्रामीण परिवेश के बच्चों में जब अभी से इतनी सहनशीलता और अनुशासन है तो निश्चय ही ये आगे चलकर अपने जीवन में कुछ कर दिखाएँगे,,, इनके लिए कुछ जरुरी साधन जुटाने भी जरूरी थे अतः मैंने एक मुहिम शुरू की,,,आस-पास के सम्पन्न वर्ग के घरों से कपड़े जुटाने शुरू किये, सुबह उठकर ही अपना बड़ा वाला झोला उठाये दो/तीन दिन विद्यालय समय के बाद घूमा और कुछ कपड़े इकट्ठे किये जिन्हें लाकर अगले दिन विद्यालय के जरूरतमंद बच्चों में बाँट दिया,,,हालाँकि ये कोशिश अभाव में जी रहे इन नौनिहालों के लिये बहुत ही छोटी है लेकिन आत्मसंतोष इस बात का है कि छोटी सी ही सही कोशिश शुरू तो हुई,,,इस मुहिम का सार्थक परिणाम मुझे तुरन्त देखने को मिलने लगा जब आस-पास के कुछ मध्यम वर्ग के किसानों ने बच्चों के मध्यान्ह भोजन हेतु सब्जियाँ लाकर विद्यालय में भेंट करनी शुरू कर दीं,,, कुछ कपड़े भी स्वेच्छा से लाकर लोग देने लगे हैं और यह आश्वासन भी मिलने लगा कि कोई 'अन्य जरूरत' भी हो तो वे सहर्ष तैयार हैं,,,विद्यालय में नित कोई ना कोई सब्जी, फल, कपड़े लेकर आने का सिलसिला शुरू हुआ है जिससे एक तरफ मेरा हौसला बढ़ा और दूसरी तरफ सामुदायिक सहयोग की भावना को सफल होते देख विद्यालय परिवार भी खुश है,,,ये घटनाएँ मेरे जीवन की यादगार घटनाओं में से एक बन चुकी है जिसे शायद आजीवन विस्मृत कर पाना असंभव होगा,,, वास्तव में हमारा सिस्टम भले ही कुछ कमजोर हो, ग्रामीण परिवेश में अभाव और विपन्नता हो लेकिन ग्रामीण परिवेश के लोगों की सहृदयता, मानवता और सहयोग की भावना आज भी इतनी प्रबल है कि आपके किसी भी सार्थक और हितकारी पहल को सफल बना ही देती है,,,फिलहाल इस मुहिम को आगे बढ़ाते हुए पुनः ईश्वर को धन्यवाद देता हूँ की नौनिहालों के लिए कुछ कर गुजरने का निमित्त मुझे बनाया और यह सुअवसर प्रदान किया,,
धन्यवाद,
संतोष प्रजापति
(स0अ0)
प्रा0वि0 मोहम्मदपुर काँध
वि0क्षे0 धर्मापुर,जौनपुर (उ0प्र0)
(स0अ0)
प्रा0वि0 मोहम्मदपुर काँध
वि0क्षे0 धर्मापुर,जौनपुर (उ0प्र0)
संतोष प्रजापति जी और उनके सहयोगी विद्यालय परिवार को मिशन शिक्षण संवाद की ओर से ऐसी मानवीय पहल के लिए हृदय से आभार एवं एवं कोटि- कोटि नमन!
मित्रो आप भी यदि बेसिक शिक्षा विभाग के सम्मानित शिक्षक हैं या शिक्षा को मनुष्य जीवन के लिए महत्वपूर्ण और अपना कर्तव्य मानते है तो इस मिशन संवाद के माध्यम से शिक्षा एवं शिक्षक के हित और सम्मान की रक्षा के लिए हाथ से हाथ मिला कर अभियान को सफल बनाने के लिए इसे अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाने में सहयोगी बनें और शिक्षक धर्म का पालन करें। हमें विश्वास है कि अगर आप लोग हाथ से हाथ मिलाकर संगठित रूप से आगे बढ़े तो निश्चित ही बेसिक शिक्षा से नकारात्मकता की अंधेरी रात का अन्त होकर रोशनी की नयी किरण के साथ नया सबेरा अवश्य आयेगा। इसलिए--
आओ हम सब हाथ मिलायें।
बेसिक शिक्षा का मान बढ़ायें।।
बेसिक शिक्षा का मान बढ़ायें।।
नोटः- यदि आप या आपके आसपास कोई बेसिक शिक्षा का शिक्षक अच्छे कार्य कर शिक्षा एवं शिक्षक को सम्मानित स्थान दिलाने में सहयोग कर रहा है तो बिना किसी संकोच के अपने विद्यालय की उपलब्धियों और गतिविधियों को हम तक पहुँचाने में सहयोग करें। आपकी ये उपलब्धियाँ और गतिविधियाँ हजारों शिक्षकों के लिए नयी ऊर्जा और प्रेरणा का काम करेंगी। इसलिए बेसिक शिक्षा को सम्मानित स्थान दिलाने के लिए हम सब मिशन शिक्षण संवाद के माध्यम से जुड़कर एक दूसरे से सीखें और सिखायें। बेसिक शिक्षा की नकारात्मकता को दूर भगायें।
उपलब्धियों का विवरण और फोटो भेजने का WhatsApp no- 9458278429 है।
साभार: शिक्षण संवाद एवं गतिविधियाँ
विमल कुमार
कानपुर देहात
04/12/2016
विमल कुमार
कानपुर देहात
04/12/2016
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