दीप हूँ

दीप हूँ, अनेक दीप
मैं जलाकर जाऊँगा
तम जहां में हो कहीं
रोशनी बिखराऊँगा।
बढ़ चले हैं पग मेरे
ज्ञान की जिस राह पर
कर रहीं स्वागत मेरा
ढेर बाधाएँ मगर
रोक सकता है नहीं
कोई पर्वत भी मुझे
मार्ग भूधर में बना
माँझी-सा मैं इतराऊँगा।
रास्ते में हों भले
तूफान सी दुश्वारियाँ
हौंसला मेरा डिगा
सकती नहीं ये बिजलियाँ
घनघोर बादल हों जहाँ
परचम वहीं लहराऊँगा।
दीप से दीपक जलें
स्वप्न नैनों में बसा
देखता हूँ फैलती
चहुँओर ज्ञान की प्रभा
ख़्वाब पूरा सच करूँगा
ज्ञान दीप श्रृंखला का
जब तक बने न देश में
आराम न फरमाऊँगा।
दीप हूँ, अनेक दीप
मैं जलाकर जाऊँगा।

रचयिता
तिलक सिंह,
प्रधानध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय फुसावली,
विकास खण्ड-गंगीरी,
जनपद-अलीगढ़।

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