अक्षय तृतीया

          वैशाख मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को ‘अक्षय तृतीया या ‘आखा तीज’ कहते हैं| पुराणों के अनुसार इस तिथि में किये गये किसी भी शुभ कार्य का अक्षय फल मिलता है। हिन्दू धर्म की मान्याताओं के अनुसार बारहों  महीने की शुक्ल पक्ष  की तृतीया तिथि शुभ मानी जाती है परन्तु वैशाख माह की तृतीया तिथि की गणना स्वयंसिद्धि महुर्तों में की गयी है इसी कारण इस तिथि का विशेष महत्व है।

          सतयुग और त्रेता युग  का प्रारम्भ इसी तिथि से हुआ माना गया है। स्वयांसिद्धि महुर्त के कारण इस दिन बिना कोई पञ्चाङ्ग देखे कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है।  विवाह, गृह-प्रवेश, वस्त्र-आभूषणों की खरीददारी या घर, भूखण्ड, वाहन आदि की खरीददारी से सम्बन्धित कार्य किए जा सकते हैं। नवीन वस्त्र, आभूषण आदि धारण करने और नई संस्था, समाज आदि की स्थापना या उदघाटन का कार्य श्रेष्ठ माना जाता है।

          पुराणों में लिखा है कि इस दिन पितृ पक्ष को किया गया तर्पण तथा पिण्डदान अथवा किसी भी  प्रकार का दान अक्षय फल प्रदान करता है।  इस दिन किया गया गंगा स्नान और पूजन समस्त पापों को नष्ट करने में सक्षम है। अक्षय तृतीया को किया गया जप, तप, हवन, पूजन, दान  का फल कई गुना बढ़ जाता है। अतः इस दिन हमें  अपने आपको इश्वर के चरणों में समर्पित करके सद्गुणों के लिए प्रार्थना करनी चाहिए और अपने द्वारा जाने अनजाने में किये गये पापों  की  क्षमा याचना करनी चाहिए।

“न क्षयति इति अक्षय” अर्थात् जिसका कभी क्षय न हो उसे अक्षय कहते हैं। वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया के नाम से जाना जाता है। वैशाख शुक्ल पक्ष की तृतीया 26 अप्रैल 2020 को है।  मुहूर्त शास्त्र में यह दिन अत्यन्त शुभ माना गया है। इसी दिन भगवान परशुराम का जन्म होने के कारण इसे “परशुराम तीज” अथवा परशुराम जयन्ती भी कहा जाता है।

          गणेश जी ने भगवान व्यास के साथ इसी दिन से महाभारत लिखना शुरू किया था।  इस दिन गंगा-स्नान तथा  भगवान श्री कृष्ण को चन्दन लगाने का विशेष महत्त्व है। कहा जाता है कि इस दिन जिनका परिणय-संस्कार होता है उनका सौभाग्य अखण्ड रहता है। इस दिन महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए भी विशेष अनुष्ठान करने का विधान है। इस दिन माँ लक्ष्मी यथाशीघ्र प्रसन्न होती है और अनुष्ठान कर्ता धन-धान्य से परिपूर्ण हो जाता है, साथ ही पुण्य को भी प्राप्त करता है। अक्षय तृतीया को अनन्त-अक्षय-अक्षुण्ण फल प्रदान करने वाला दिन भी कहा जाता है।

अस्यां तिथौ क्षयमुर्पति हुतं न दत्तं।
तेनाक्षयेति कथिता मुनिभिस्तृतीया॥
उद्दिष्य दैवतपितृन्क्रियते मनुष्यैः।
तत् च अक्षयं भवति भारत सर्वमेव॥

          शास्त्रानुसार इस दिन को स्वयंसिद्ध मुहूर्त माना गया है अर्थात् इस दिन बिना पञ्चाङ्ग देखे कोई भी शुभ कार्य किया जा सकता है। जिसे कोई मुहूर्त नहीं मिल रहा है उसे इस दिन शुभ कार्य कर लेना चाहिए। सोने का आभूषण खरीदने के लिए इस दिन को सबसे पवित्र माना जाता है, परन्तु किसी से उधार पैसा लेकर खरीदारी नहीं करनी चाहिए।

          इस बार की अक्षय तृतीया रविवार को है उस दिन सूर्य देवता अपनी उच्च राशि मेष में बुध के साथ रहेंगे। रात्रि के स्वामी चन्द्रमा उच्च होकर वृषभ राशि में रहेंगे।  27 तरह के योगों में अक्षय तृतीया के दिन “शोभन” नामक’ योग रहेगा। यह अपने नाम के अनुसार ही फल देता है। अक्षय तृतीया के दिन सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निपट कर ताँबे के बर्तन में शुद्ध जल लेकर भगवान सूर्य को पूर्व की ओर मुख करके चढ़ाएँ तथा इन 3 मन्त्रों में से किसी 1 मंत्र का जप करें-

ॐ भास्कराय विग्रहे महातेजाय धीमहि, तन्नो सूर्य: प्रचोदयात्।

ॐ ह्रीं ह्रीं सूर्याय, सहस्त्र किरणाय मनोवांछित फलं देहि देहि स्वाहा।

ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशो तेजो राशे जगत्पते, अनुकंपये मां भक्तया, ग्रहाणार्घ्यं दिवाकर।

          अक्षय तृतीया के बाद प्रत्येक दिन सात बार इस प्रक्रिया को दोहराएँ। आप देखेंगे कि आश्चर्यजनक रूप से आपका भाग्य चमक उठेगा। यदि यह उपाय सूर्योदय के एक घंटे के भीतर किया जाए तो और भी शीघ्र फल देता है। इस दिन समस्त शुभ कार्य करने का विधान है। इस दिन प्रमुख रूप से स्वर्ण आभूषण या आवश्यकता के अन्य वस्तु जैसे कम्प्यूटर, मोबाइल, फ्रिज, गाड़ी आदि खरीदना चाहिए। इस दिन भूमि पूजन, गृह प्रवेश, पदभार ग्रहण या कोई नया व्यापार प्रारम्भ करना चाहिए।

          अक्षय तृतीया में पूजा, जप-तप, दान स्नानादि शुभ कार्यों का विशेष महत्व तथा फल रहता है। इस दिन गंगा इत्यादि पवित्र नदियों और तीर्थों में स्नान करने का विशेष फल प्राप्त होता है. यज्ञ, होम, देव-पितृ तर्पण, जप, दान आदि कर्म करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है।

          पुराणों में भविष्य पुराण के अनुसार अक्षय तृतीया के दिन ही सत्युग एवं त्रेतायुग का प्रारम्भ हुआ था। भगवान विष्णु के 24  अवतारों में भगवान परशुराम, नर-नारायण एवं हयग्रीव आदि तीन अवतार अक्षय तृतीया के दिन ही इस पृथ्वी पर आए। प्रसिद्ध तीर्थस्थल बद्रीनारायण के कपाट भी अक्षय तृतीया को खुलते हैं। वृन्दावन के बाँके बिहारी के चरण दर्शन केवल अक्षय तृतीया को ही होते हैं भगवान श्री कृष्ण ने भी अक्षय तृतीया के महत्त्व के सम्बन्ध में बताते हुए युधिष्ठर से कहते हैं कि हे राजन्! इस तिथि पर किए गए दान तथा  हवन का कभी  क्षय नहीं होता अतएव  हमारे ऋषि-मुनियों ने इसे ‘अक्षय तृतीया’ कहा है। अक्षय तृतीया पर भगवान की कृपा दृष्टि पाने एवं पितरों की गति के लिए की गई कार्य-विधियाँ अक्षय व अविनाशी होती हैं।

सम्पूर्ण वर्ष में साढ़े तीन अक्षय मुहूर्त है, उसमें प्रमुख स्थान अक्षय तृतीया का है। ये हैं- चैत्र शुक्ल प्रतिपदा, वैशाख शुक्ल अक्षय तृतीया सम्पूर्ण दिन, आश्विन शुक्ल विजयादशमी तथा कार्तिक शुक्ल  प्रतिपदा का आधा भाग...

अक्षय तृतीया मनाने की विधि......

          अक्षय तृतीया के दिन नित्य क्रिया से निवृत्त होकर तथा पवित्र जल से स्नान करके श्री विष्णु भगवान की विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। होम-हवन, जप एवं दान करने के बाद पितृतर्पण करना चाहिए। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि इस दिन बिना पिण्ड दिए विधिपूर्वक ब्राह्मण भोजन के रूप में श्राद्ध कर्म करना चाहिए। यदि यह सम्भव न हो, तो कम से कम तिल तर्पण अवश्य ही करना चाहिए। दान में कलश, पंखा, खड़ाऊ, सत्तू, ककड़ी, इत्यादि फल, शक्कर आदि दान भी करनी चाहिए। इस दिन “छाता का दान” अत्यन्त शुभ होता है।

         स्त्रियों के लिए यह दिन अति महत्त्वपूर्ण होता है। चैत्र मास में स्थापित चैत्रगौरी का इस दिन विसर्जन किया जाता है। इस कारण स्त्रियाँ इस दिन हल्दी-कुमकुम (हल्दी-कुमकुम एक रिवाज है, जिसमें सुहागिन स्त्रियाँ अपने घर में अन्य सुहागिनों को बुलाती है तथा उन्हें देवी का रूप मानकर उन्हें हल्दी-कुमकुम लगाकर तदुपरान्त चरण स्पर्श करके उपहार देती है) करती हैं।

पूर्वजों को गति हेतु तिल तर्पण का विधान......

          पूर्वजों को गति हेतु तिल तर्पण का विधान अत्यन्त ही प्राचीन काल से चला आ रहा है। तिल तर्पण में देवता और  पूर्वजों को तिल तथा जल अर्पित करने का विधान है। जहाँ तिल सात्त्विकता का प्रतीक है वहीं जल शुद्ध भाव का प्रतीक है। तिल तर्पण का अर्थ है, देवता को तिल के रूप में कृतज्ञता तथा शरणागत भाव अर्पण करना। तिल अर्पण करते समय भाव रखना चाहिए कि ‘ईश्वर के द्वारा ही सब कुछ मुझसे करवाया जा रहा है अर्थात् तिल-तर्पण के समय साधक में मन, वचन और कर्म से किसी भी तरह अहंकार की भावना नहीं होनी चाहिए।

लेखक
राजेन्द्र सिंह,
सहायक अध्यापक, 
पूर्व माध्यमिक विद्यालय सिंहपुर हिम्मतपुर, 
विकास खण्ड-बिजौली, 
जनपद-अलीगढ़।

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