मजदूर दिवस

सुन्दर घर का देखा सपना,
प्यार सजा हो हर एक कोना,
प्यारा सा इसमे बगीचा लगाएँ,
प्रेम से अपना घर सजाएँ।
इस घर को श्रमिक हैं बनाते,
तब रहने लायक हम पाते,
नहीं सोचते श्रमिक का दिवस,
प्रतिवर्ष मानते "मजदूर दिवस"।
"1 मई 1886" को आंदोलन हुआ,
शोषण के विरुद्ध शंखनाद हुआ,
पुलिस की फ़ायरिंग का हुए शिकार,
नहीं छोड़ा फिर भी अपना अधिकार।
1888 में प्रस्ताव आया,
1 मई को मजदूर दिवस मनाया,
श्रमिकों को उनका हक दिलाया,
समाज मे उन्होंने स्थान पाया।
तमिल में ये उझेपलर धीनम,
थिझिल्ली दिनामे होता मलयालम,
कन्नड़ में कर्मिकरा दीनाचारें कहाये,
भारत में श्रमिक दिवस नाम आये।
वचन मात्र से नही होती इतिश्री,
कर्तव्य बोध से न करें दूरी,
मजदूर दिवस हम रोज मनाएँ,
समानता को उनकी ध्यान मे लाएँ।
 
रचयिता
नम्रता श्रीवास्तव,
प्रधानाध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय बड़ेह स्योढ़ा,
विकास खण्ड-महुआ,
जिला-बाँदा।

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