नमो सूर्यायः

(प्राण = ऑक्सीजन गैस)

धरती अपनी ही धुरी, घूमत है बल खाय।
पश्चिम ते पूरव चले, तौ दिन - रात बनाय।।

पृथ्वी नव-ग्रह संग ही, रवि के चक्कर खाय।
ऋतु परिवर्तन काल कौ, कारक हू  बन जाय।।

खनिज, वारि जड़ ते मिलै, प्राण रन्ध्र सौ पाय।
हरित-लवक अरु धूप में, भोजन वृक्ष बनाय।।

भाप रूप ऊपर उठै, बदरी बन कै छाय।
अधिक वृक्ष कारक बनै, रिमझिम बारिश लाय।।

गरम हवा ऊपर उठै, ठण्डी नीचै आय।
लेवै दूजे की जगह, हवा तेज चल जाय।।

परिवर्तन कारक भयौ, पृथ्वी सुख पहुँचाय।
सम्मुख सूरज देवता, वेदन यही कहाय।।

रचयिता
विपिन गुप्त 'वेद',
विज्ञान पार्ट टाइम टीचर,
कस्तूरबा गांधी आवासीय बालिका विद्यालय छाता, 
विकास खण्ड-छाता,
जनपद-मथुरा।

Comments

  1. धन्यवाद शिक्षण संवाद

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