अदभुत सूरदास

रुनकता में जन्मे सूर,
विद्वता में बहुत ही अदभुत,
भेंट वल्लभाचार्य से हुई,
पुष्टि मार्ग में हुए वे दीक्षित।

कृष्णभक्ति की अलख जगी फिर,
वात्सल्य रस सम्राट कहलाये,
श्रृंगार और शान्त रसों का,
मर्मस्पर्शी वर्णन कर पाये।

ब्रजभाषा के कविवर श्रेष्ठ,
हिंदी साहित्य के सूर्य प्रचंड,
मोहन के बालरूप पर मोहित,
उनकी भक्ति देख सब दंग।

सूर सागर, सूर सारावली,
उनकी रचनात्मकता के प्रतीक,
साहित्य लहरी, नल दमयन्ती व ब्याहलो,
पाँचों कृतियाँ बहुत सटीक।

बालकृष्ण के गेय पदों का,
सचित्र वर्णन तब हम पाते हैं,
सगुण कृष्ण भक्ति धारा की,
काव्य निर्झरणी में भीग जाते हैं।

सूर जन्मांध माने जाते है,
वे आश्चर्यचकित कर जाते,
राधा-कृष्ण के रूप सौन्दर्य का
सजीव चित्रण कैसे कर पाते?

पारसोली में देह त्याग कर,
फिर परलोक गए वो सिधार,
विराजमान हो युगों युगों तक,
भक्त कंठों पर सूर सितार।

 नागरी प्रचारिणी सभा में,
१६ ग्रन्थ हस्तलिखित बताते,
सूर तुम्हारी अद्भुत प्रतिभा को,
हम सब  मिलकर शीश नवाते।

रचयिता
पूनम दानू पुंडीर,
सहायक अध्यापक,
रा०प्रा०वि० गुडम स्टेट,
संकुल-तलवाड़ी,
विकास खण्ड-थराली,
जनपद-चमोली, 
उत्तराखण्ड।

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