विद्यालय की यादें

आओ! लौटते हैं सब स्कूल के दिनों में....
जहाँ खोये रहते थे सब सखा और सखियों में

तो शुरु करते है विद्यार्थी वाली दिनचर्या..
उस समय सपनों में आते थे सिर्फ आचार्य और आचार्या

वो माँ की एक आवाज से सुबह उठ जाना..
और माँ द्वारा हम सबको स्कूल के लिये सजाना

वो सुबह के नाश्ते के साथ जल्दी जल्दी गृहकार्य करना
कही देर न हो जाये इसलिये बार-बार घड़ी देखना

सरपट-सरपट चलते स्कूल को नन्हें पाँव..
खाली कागज मिलते ही बनाना शुरू कर देते थे नाव

वो इतिहास की कक्षा में गुरु जी की मार..
और सामाजिक विज्ञान में प्रश्नों का प्रहार

मुस्कुरा लेते हैं धीरे से सोचकर वो सब बातें
हाय रे यादें, हाय रे यादें

स्कूल में पढ़कर पाते थे गुरु जी का दुलार
घर पर बरसता था मम्मी पापा का प्यार

बचपन के ही वो लम्हें जो होते हैं सिर्फ अपने
फिर तो जीवन भर लोग सजाते हैं सिर्फ सपने......
                   
रचयिता
मोनिका गौतम,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय गौरी औंरा,
विकास खण्ड-अमौली, 
जनपद-फतेहपुर।

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