श्रम दिवस

संघर्षों के पथ पर चलकर, जो इतिहास बनाते हैं
वही श्रम दिवस पर, जग में सम्मान पाते हैं।

जब से धरा पर, मनुज का अवतार हुआ।
श्रमिकों के ही कंधों पर, समाज का भार हुआ।
दूजों को सुख देने को, श्रम के व्यापार होते हैं।
बदले में कहीं प्यार तो, कहीं तिरस्कार होते हैं।

संघर्षों के पथ पर चलकर, जो इतिहास बनाते हैं
वही श्रम दिवस पर, जग में सम्मान पाते हैं।
लोगों की सेवा करते, जब काफी समय हुआ,
श्रमिकों के शोषण का भी, पलड़ा भारी हुआ।
धीमे-धीमे पूँजीपति, काम के घंटे बढ़ाते हैं।
अधिक काम के बोझ से श्रमिक टूट जाते हैं।

संघर्षों के पथ पर चलकर जो इतिहास बनाते हैं
वही श्रम दिवस पर जग में सम्मान पाते हैं।
यूरोप में एक देश था, उसका नाम कनाडा हुआ।
 जहाँ मजदूरों पर, बहुत अत्याचार हुआ।
पल-पल संघर्ष, प्रदर्शन, आंदोलन  होते हैं।
शोषण के विरुद्ध सुर, बगावत के फूटते हैं।

संघर्षों के पथ पर चलकर, जो इतिहास बनाते हैं
वही श्रम दिवस पर, जग में सम्मान पाते हैं।
 इस संघर्ष में कुछ, अपनों को खोते हैं।
संघर्षों का विराम हुआ, सबका अधिकार मिला,
 मई के प्रथम दिन, नियम बनते हैं,
सच्चे संघर्षों के, परिणाम मिलते हैं।

संघर्षों के पथ पर चलकर, जो इतिहास बनाते हैं
वही श्रम दिवस पर, जग में सम्मान पाते हैं।
भारत में भी एक मई को, हम संघर्ष गाथा गाते हैं।
 कहे 'ओम' सबसे, सन उन्नीस सौ तेईस से,
 भारत में भी ससम्मान, श्रम दिवस मनाते हैं।।

संघर्षों के पथ पर चलकर जो इतिहास बनाते हैं
वही श्रम दिवस पर जग में सम्मान पाते हैं।

रचयिता
ओम प्रकाश श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापक, 
प्राथमिक विद्यालय उदयापुर, 
विकास खण्ड-भीतरगाँव,
जनपद-कानपुर नगर।

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