बाल-विवाह

बाल-विवाह
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गुड़िया, खेल-खिलौने वाली
उमर हुई थी बच्ची की
मन अबोध था, मन चंचल था
माटी देह की कच्ची थी

रूढ़ रिवाजों ने बच्ची को
बचपन मे ही मार दिया
काया खोई, अंधकार में
सारा जीवन पार किया

दहेज हत्या
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जब वो पैदा हुई,
उसे यह बताया गया...
समाज के नाम पर
इतना ही सिखाया गया
तुम्हारा घर नहीं है यह
तुम्हे जाना है कहीं और....
पराया है यहाँ सब कुछ
तुम्हारी देह, मुँह का कौर
सुंदर राजकुमार का सपना
दिखाया गया
और जब पराये घर पहुँचीतो
उसे जलाया गया

अंधविश्वास
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जादू-टोने की दुनिया में
कहाँ मोल है औषधि का?
वो कहते हैं हर इलाज है
हर गर्मी-हर सर्दी का
जब भी कोई आफत आये
वो भूत भगाते दिखते हैं
सच है अब भी दुनिया में
ये बाबा महँगेबिकते हैं

बेटा और बेटी में अंतर
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पहली शर्त है
मत मारो
जब माँ के गर्भ में आती है
दूसरी शर्त है, शिक्षा दो
वो सम्मान दिलाती है
जैसे कष्ट सहे थे माँ ने
जब जन्मा था बेटे को
वैसे ही कष्टों को सहकर
माँ धरती पर लाती है

फिर क्यों इतना
अंतर होता है?
इक बेटे इक बेटी में
बेटी ही है जो
इस दुनिया मे
बेटों को भी लाती है

रचयिता
रश्मि श्रीवास्तव,
सहायक अध्यापिका,
प्राथमिक विद्यालय रहिमापुर,
विकास खण्ड-भिटौरा,
जनपद-फतेहपुर।

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