पंचायती राज दिवस

पंचायती राज दिवस ( राष्ट्रीय स्थानीय स्वशासन दिवस) से महिला सशक्तिकरण तक का सफर

     24 अप्रैल को हम पंचायती राज दिवस मनाते हैं। पंचायती राज दिवस की कल्पना गांधी जी के ग्राम स्वराज के विचार से उत्पन्न हुई थी। पंचायती राज ने जहाँ एक ओर ग्रामों को सशक्त किया, वहीं दूसरी ओर इस विकेन्द्रीकृत शासन ने महिलाओं को नीचे के स्तर के शासन में शामिल किया, जिसका आँकड़ा आज कुछ ज्यादा ही है।
        भारत के प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह ने 24 अप्रैल 2010 को पहला राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस घोषित किया। उन्होंने उल्लेख किया कि यदि पंचायती राज संस्थाओं ने ठीक से काम किया व स्थानीय लोगों ने विकास में भाग लिया तो देश तरक्की करेगा।
         प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 24 अप्रैल 2015 को महिलाओं के सरपंचों के पतियों या सरपंच पति की प्रथा को समाप्त काने का आवाह्न किया ताकि वे सत्ता में चुने जाने वाले अपने काम के लिए उचित प्रभाव डाल सकें।
      महिलाएँ अपनेआप को कमतर न आँकें व अनेक उदाहरणों को लेते हुए रानी लक्ष्मीबाई जैसे आगे रणभूमि में आये एवं देश का विकास करें। देश की 10 महिला सरपंच, कोई mba पास कोई Harvard से ले चुकी हैं डिग्री। यह संभव हो पाया पंचायती राज सिस्टम में महिलाओं को रिप्रजेंटेशन देने से।
      इसी में सरपंच भक्ति शर्मा ( भोपाल ) जो अमेरिका से वापस आकर अपने गाँव की सरपंच बनीं एवं गाँव का विकास पूरी ईमानदारी से करके देश का नाम रोशन कर रही  है।
        वीणा चौधरी( राजस्थान) कम उम्र में शादी हो जाने से दुखी महिला ने सरपंच बन ठाना की बाल विवाह रोक देंगी।
       अतः आज महिलाएँ हर फील्ड में अच्छा कर रही हैं। आगे आ रही हैं, अपने विचार रख रही हैं, फाइटर प्लेन उड़ा रही हैं। अतः नारी तुम अबला नही सबला हो, तुम्हें शत-शत प्रणाम है, अपनी विजय पताका ऐसे ही फहराते रहो।
 
लेखिका
अंजली मिश्रा,
सहायक अध्यापक,
प्राथमिक विद्यालय असनी प्रथम,
शिक्षा क्षेत्र-भिटौरा,
जनपद-फतेहपुर।

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