व्यथा की कथा

देख व्यथा मुख
मुख न खोले।
सीता का दुःख
हिय कैसे तोले।।

1)नियति का निराला
लेख जो बोले।
विडम्बना देख मन
यूँ हर पल डोले।।

2)विष देकर ममता
यूँ मोले।
कैकेयी सुकुमारी को
अरण्य में खगोले।।

3)देख हिय नित
कम्पन बोले।
सुकुमारी पुष्पित
शूलों पर डोले।।

4) इतने पर रहे न
नियति सुखेले।
कण्टक से उठा
लंका में झोले।।

5) भले स्वर्ण को
वन से मोले।
बिन पति सीता
इसे तुच्छ ही तोले।।

6) चढ़े तराज़ू
समाज यूँ बोले।
लंका रह आई
विष मद्धम घोले।।

7) क्या कसूर
इतना तो बोले।
कण्टक सा जीवन
नैना तो खोले।।

8) मैला मन कर
दागे जो गोले।
पत्थर बन कोमल
हिय न डोले।।

9) गर पुरुष ही है तो
सतीत्व न मोले।
तू अज्ञानी जो 'पावन
सीता' को तौले।।

रचयिता
आयुषी अग्रवाल,
सहायक अध्यापक,
कम्पोजिट विद्यालय शेखूपुर खास,
विकास खण्ड-कुन्दरकी,
जनपद-मुरादाबाद।

Comments

Total Pageviews