आदि शंकराचार्य
अष्टवर्षे चतुर्वेदी, द्वादशे सर्वशास्त्रवित् ।
षोडशे कृतवान्भाष्य, द्वात्रिंशेमुनिरम्यगात्।।
अर्थात आठ वर्ष की आयु मे जिन्होने चार वेद पढ़ लिए, बारह वर्ष की उम्र मे समस्त शास्त्रों का अभ्यास कर लिया, सोलह वर्ष की आयु मे ब्रह्म सूत्र भाष्य लिख दिया केवल 32 वर्ष की अवस्था में समस्त भारत को वैदिक संस्कृति से आप्लावित कर स्वधाम गमन कर गये वह शंकराचार्य जी हैं।
आदि शंकराचार्य भारत के महान दार्शनिक एवं धर्म प्रवर्तक थे। उन्होंने अद्वैत वेदांत को ठोस आधार प्रदान किया। उन्होंने सनातन धर्म की विविध विचार धाराओं का एकीकरण किया। वे संस्कृत के महान विद्वान, अद्वैत वेदांत के प्रणेता और उपनिषद व्याख्याता थे।
वैशाख शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आदि शंकराचार्य की जयन्ती मनाई जाती है। शंकराचार्य का जन्म ब्राह्मण परिवार मे हुआ था। इनके बचपन का नाम शंकर था। इन्होने अपना जीवन धर्म रक्षा के लिए समर्पित कर दिया था।
इनको अल्पायु मे ही वैराग्य हो गया था। धर्म के नाम पर चल रहे आडंबर के विरुद्ध संघर्ष के लिए स्वगृह त्याग कर देशाटन किया था।
इनकी कृतियाँ त्रिमूर्ति के नाम से प्रसिद्ध हैं।
1- उपनिषदभाष्य
2-गीता भाष्य
3-ब्रह्मसूत्र
आदि शंकराचार्य ने 12 ज्योतिर्लिंगों और भारत के चार कोनो मे चार मठों की स्थापना की थी। ये चार मठ हैं।
1-श्रृंगेरीमठ
2-गोवर्धन मठ
3-शारदा मठ
4-ज्योतिर्मठ
32 वर्ष की अवस्था मे इनकी मृत्यु हो गई थी।आदि शंकराचार्य का पुरुषार्थ किसी से कम नहीं है।
आदि शंकराचार्य जी के अनमोल विचार इस प्रकार हैं।
"मंदिर वही पहुँचता है जो धन्यवाद देने जाता है, माँगने नहीं।"
षोडशे कृतवान्भाष्य, द्वात्रिंशेमुनिरम्यगात्।।
अर्थात आठ वर्ष की आयु मे जिन्होने चार वेद पढ़ लिए, बारह वर्ष की उम्र मे समस्त शास्त्रों का अभ्यास कर लिया, सोलह वर्ष की आयु मे ब्रह्म सूत्र भाष्य लिख दिया केवल 32 वर्ष की अवस्था में समस्त भारत को वैदिक संस्कृति से आप्लावित कर स्वधाम गमन कर गये वह शंकराचार्य जी हैं।
आदि शंकराचार्य भारत के महान दार्शनिक एवं धर्म प्रवर्तक थे। उन्होंने अद्वैत वेदांत को ठोस आधार प्रदान किया। उन्होंने सनातन धर्म की विविध विचार धाराओं का एकीकरण किया। वे संस्कृत के महान विद्वान, अद्वैत वेदांत के प्रणेता और उपनिषद व्याख्याता थे।
वैशाख शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आदि शंकराचार्य की जयन्ती मनाई जाती है। शंकराचार्य का जन्म ब्राह्मण परिवार मे हुआ था। इनके बचपन का नाम शंकर था। इन्होने अपना जीवन धर्म रक्षा के लिए समर्पित कर दिया था।
इनको अल्पायु मे ही वैराग्य हो गया था। धर्म के नाम पर चल रहे आडंबर के विरुद्ध संघर्ष के लिए स्वगृह त्याग कर देशाटन किया था।
इनकी कृतियाँ त्रिमूर्ति के नाम से प्रसिद्ध हैं।
1- उपनिषदभाष्य
2-गीता भाष्य
3-ब्रह्मसूत्र
आदि शंकराचार्य ने 12 ज्योतिर्लिंगों और भारत के चार कोनो मे चार मठों की स्थापना की थी। ये चार मठ हैं।
1-श्रृंगेरीमठ
2-गोवर्धन मठ
3-शारदा मठ
4-ज्योतिर्मठ
32 वर्ष की अवस्था मे इनकी मृत्यु हो गई थी।आदि शंकराचार्य का पुरुषार्थ किसी से कम नहीं है।
आदि शंकराचार्य जी के अनमोल विचार इस प्रकार हैं।
"मंदिर वही पहुँचता है जो धन्यवाद देने जाता है, माँगने नहीं।"
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