माहे रमज़ान

गुज़र गया माहे शाबान
आ गया माहे रमज़ान
गुनाहों से बख्श़िश कराता है
भूख प्यास की शिद्दत बताता है। 

इसी माह उतरी क़ुरआन आसमां से।
जिसकी तिलावत करें पाक़ ज़ुबां से।
करें खूब इबादत, तौबा उस इलाही से ।
नवाज़ा है जिसनें इस माह को बरक़तो से

सुबह सहर मे उठने की फिक्र
दिन भर रहता उस रब का ज़िक्र,
फिर इफ्तार के वक़्त का वो सब्र
कैसे देता है इतनी हिम्मत मेरा रब

निकाले खुद की कमाई से ज़क़ात (दान)
हक़ हलाल की रोटी हो जाएँ पाक़
शिक़वे ग़िले मिटाकर करें माफ
मुल्क़ में हो चैनों अमन करे दुवाएँ

रचयिता
फरहत तबस्सुम,
राजकीय प्राथमिक विद्यालय कालिका,
विकास खण्ड-धारचूला,
जनपद-पिथौरागढ़,
उत्तराखण्ड।

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